Comment
ज़बान दे के पलटना तुम्हें मुबारक हो
मैं ख़ुश हूँ, मुझसे तिज़ारत नहीं हुआ करती
मैं कैसे झूठ को सच और सच को झूठ कहूँ
कि एक दिन में ये आदत नहीं हुआ करती
आदरणीय दिनेश जी उम्दा और मयारी ग़ज़ल हुई है ,शेर दर शेर दाद कबूल फरमावें |मक्ते की शेरियत लासानी है, मतले ने सभी अशहार को अच्छी रवानी दे है |सादर अभिनन्दन |
कभी अनाड़ी था वो आज नामी शायर है
कभी फ़ुज़ूल मशक़्क़त नहीं हुआ करती --------- बहुत सही बात कही आदरणीय दिनेश भाई , गज़ल के लिये ढेरों दाद ।
कहानियों में हक़ीक़त नहीं हुआ करती
बिना फरेब सियासत नहीं हुआ करती- बहुत खूब ये मतला मौजूदा राजनीतिक विचाराधारा पर चोट करता हुआ दिखता है
ज़बान दे के पलटना तुम्हें मुबारक हो
मैं ख़ुश हूँ, मुझसे तिज़ारत नहीं हुआ करती- बेहतरीन वाह
मैं कैसे झूठ को सच और सच को झूठ कहूँ
कि एक दिन में ये आदत नहीं हुआ करती- लाजवाब
जो चंद पैसों में ईमान बेच देते हैं
उन्हें किसी से रिफ़ाक़त नहीं हुआ करती - बहुत खूब कड़वा किन्तु सच
कभी अनाड़ी था वो आज नामी शायर है
कभी फ़ुज़ूल मशक़्क़त नहीं हुआ करती - वाह वाह वाह वाह वाकई ग़ज़लगोई आसान नहीं
'दिनेश' तू भी ज़माने का ढंग अपना ले
शरीफ़ लोगों की इज़्ज़त नहीं हुआ करती- क्या खूब कहा है आदरणीय दिनेश जी आपने
हर शेर ने मुतास्सिर किया है दिली दाद कुबूल फरमायें
दिनेश' तू भी ज़माने का ढंग अपना ले
शरीफ़ लोगों की इज़्ज़त नहीं हुआ करती|
क्या कटू सत्य है इस गज़ल में ,हार्दिक बधाई |
वाह वाह
आदरणीय दिनेश जी खूबसूरत ग़ज़ल .....
मैं कैसे झूठ को सच और सच को झूठ कहूँ
कि एक दिन में ये आदत नहीं हुआ करती...वाह... हार्दिक बधाई , सादर !
Behad khoobsurat gazal...Dil ko chho gayi Bhai Dinesh Kumarji.
आदरणीय दिनेश जी खूबसूरत गज़ल के लिए मुबारकबाद .....
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online