For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 2122 1212 22

झूठ ही बन गया है आँचल क्या

धूप लगने लगी है अफ़्ज़ल क्या                         (अफ़्ज़ल –भला)

 

अक्ल की बंद खिड़कियाँ खोलो

टाट लगने लगा है मखमल क्या

 

जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज

दिल में कायम रहेगा ये कल क्या

 

किस्से कुछ और थे हकीकत और

ये रवायात बदलीं पल-पल क्या

 

छटपटाहट सी क्यूँ है चेहरे पर

मच उठी दिल में कोई हलचल क्या

 

फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर

आदतन हो गये हो निर्बल क्या

 

( मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 642

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 10:51am

मेरी रचना को समय देने एवं सराहने के लिये मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ऐसा ही स्नेह आगे भी बना रहे ये इल्तिजा है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 10:37am

जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज

दिल में कायम रहेगा ये कल क्या

फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर

आदतन हो गये हो निर्बल क्या   ---- बहुत बढ़िया अशआर  हुये हैं , आदरणीय शिज्जु भाई , दिली बधाइयाँ ।

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 26, 2015 at 1:39am

बहुत खूब आदरणी शिज्जू भाईजी..

यानि कि, तरह के मिसरे ने आपको खूब रोमांचित कर रखा है. यह अच्छा है.  ये ग़ज़ल भी वाकई अच्छी हुई है.
शुभ-शुभ

Comment by MAHIMA SHREE on January 25, 2015 at 11:11pm

वाह..... बहुत खूब  हर शेर लाजवाब..

Comment by somesh kumar on January 25, 2015 at 5:15pm

जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज

दिल में कायम रहेगा ये कल क्या

हर शे'र काबिले-तारीफ़ है कोई समाजिक अर्थ में तो कोई राजनैतिक सन्दर्भों में सही चोट करता है |बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 25, 2015 at 2:37pm

//फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर

आदतन हो गये हो निर्बल क्या//

वाह भाई वाह, सुन्दर शेर कहा है, ग़ज़ल अच्छी लगी, बधाई सिज्जू भाई.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 24, 2015 at 7:26pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी बहुत सुन्दर ...

फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर

आदतन हो गये हो निर्बल क्या......शानदार शब्द संयोजन ,बधाई आपको ! सादर 

Comment by Sushil Sarna on January 24, 2015 at 7:19pm

छटपटाहट सी क्यूँ है चेहरे पर
मच उठी दिल में कोई हलचल क्या

वाह शिज्जु भाई बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बन पड़ी है … हार्दिक बधाई।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 6:37pm
आदरणीय शिज्जू शकूर जी बहुत सुन्दर गजल!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 24, 2015 at 1:13pm

शिज्जू भाई

हमेशा की तरह बेहतरीन i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
31 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
32 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service