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"भीखू, तुम्हारे बेटे पर चौधरी साहब की बेटी से बलात्कार करने का अपराध साबित हो गया है। अब पंचायत अपना फैसला सुनाएगी।"
"मैं भरी पंचायत में यह यकीन के साथ कह सकता हूँ यह मेरा बेटा नहीं हो सकता है। हमारे खून में इतनी हिम्मत नहीं है किसी के साथ जबरदस्ती करे। यह जरूर किसी.........।"


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by विनोद खनगवाल on January 23, 2015 at 3:40pm
आप सभी सुधीजनों का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।
Comment by विनोद खनगवाल on January 23, 2015 at 2:53pm
आदरणीय योगराज जी जब यह लघुकथा लिखी थी मुझे नहीं पता था। यह विभिन्न पक्षों को उजागर करेगी। आपकी टिप्पणी ने मुझे काफी उत्साहित किया है। आभार आपका।
Comment by savitamishra on January 23, 2015 at 12:08pm

धो डाला आपने उजले चरित्र धारियों को ..बहुत बढ़िया


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 23, 2015 at 10:16am

बहुत गहरी बात कह दी भाई विनोद खनगवाल जी, वाह वाह ! बिना कहे ही कह डाला कि ऐसे व्यभिचारियों की रगों में किसी और का ही खून दौड़ रहा है। इस सुन्दर लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है।  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 10:39pm

बहुत दूर तक मार करती है आपकी यह लघुकथा, जो बात कही गयी वह कम महत्वपूर्ण है किन्तु जो बातें अनकही है वह काफी महत्वपूर्ण है और यही लघुकथा की खूबसूरती भी है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय विनोद जी.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 22, 2015 at 8:05pm

आदरणीय विनोद जी सुन्दर  लघुकथा बधाई आपको !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 22, 2015 at 7:59pm

न कम, न ज्यादा. बेहतर लघुकथा आदरणीय विनोद जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 22, 2015 at 7:04pm
तथ्य के मर्म को संप्रेषित करने में सफल लघुकथा।
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 22, 2015 at 6:58pm

रचना अच्छी लगी कई सामाजिक विभेद के चित्र सामने आ गए //// बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 22, 2015 at 12:36pm

विनोद जी

कमाल की पंच लाइन है i समाज के उच्च वर्ग  की प्रवृत्तियों की पोल खोलती i  बधाई हो i

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