For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब

ग़ज़ल श्री गिरिराज भंडारी जी की नज्र ...


गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब
चलो दिल ने, कहा इतना तो माना अब

न काम आया है उनका मुस्कुराना अब
यकीनन चाल तो थी कातिलाना .... अब ?

ये दिल तो उन पे अब फिसला के तब फिसला
ये तय जानो, नहीं इसका ठिकाना अब


जो दानिशवर थे सब नादान ठहरे हैं
ये किसका दर है, तुमको क्या बताना अब

ये मौसम खूबसूरत था ये माना पर
वो आये तो हुआ है शायराना अब

तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब

ग़ज़ल की बादशाहत छोड़ दी हमने
ये हमसे चाहता क्या है जमाना अब

१२२२        १२२२       १२२२
मौलिक व अप्रकाशित

(आज महीनों बाद OBO के दर पर आया, और गिरिराज भंडारी जी की एक ग़ज़ल पर कुछ कहते-कहते, जेह्न में उसी जमीन पर कुछ अशआर तैयार हो गए.... ख्वाहिश जगी कि ग़ज़ल मुकम्मल भी हो सकती है ..यूं तो फिल्बदी कहने की आदत नहीं है लेकिन करीब 7-8 महीने बाद कोई मुकम्मल ग़ज़ल हुई है तो अब जो कुछ तैयार हुआ है आपके हवाले यहीं छोड़े जा रहा हूँ ... )

Views: 906

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 5:57pm

आदरणीय वीनस जी सुन्दर  रचना , बेहतरीन गजल बधाई आपको !

Comment by vandana on December 25, 2014 at 4:47am

तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है 
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब

बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2014 at 3:49am
वाह ! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल। बधाई ,आदरणीय वीनस केसरी जी , सादर।
Comment by वीनस केसरी on December 24, 2014 at 11:22pm

ग़ज़ल को इतनी मुहब्बत नवाज़ने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by ajay sharma on December 24, 2014 at 10:37pm

तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है 
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब..................wah wah wah wah 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 10:07pm

आदरणीय वीनस सर इस बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई ... एक एक अशआर उम्दा है .क्या खूब कहा है-

गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब 
चलो दिल ने, कहा इतना तो माना अब........... बेहतरीन मतला 

न काम आया है उनका मुस्कुराना अब 
यकीनन चाल तो थी कातिलाना .... अब ? .....अच्छा अशआर 

ये दिल तो उन पे अब फिसला के तब फिसला 
ये तय जानो, नहीं इसका ठिकाना अब ..................उम्दा शेर खूब कहा है ...दिल .....अब फिसला के तब फिसला 


जो दानिशवर थे सब नादान ठहरे हैं
ये किसका दर है, तुमको क्या बताना अब.... बेहतरीन अशआर 

ये मौसम खूबसूरत था ये माना पर 
वो आये तो हुआ है शायराना अब .... गज़ब का शेर वाह्ह्ह्ह 

तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है 
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब.... वाह्ह्ह्हह्ह्ह 

ग़ज़ल की बादशाहत छोड़ दी हमने
ये हमसे चाहता क्या है जमाना अब ........ कमाल का अशआर इस शेर पर लाखों दाद कुबूल कीजिये ... सादर 

Comment by दिनेश कुमार on December 24, 2014 at 9:51pm
क्या कहना वीनस भाई, बेहतरीन गजल हुई है। वाह
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 24, 2014 at 7:19pm
तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब

ग़ज़ल की बादशाहत छोड़ दी हमने
ये हमसे चाहता क्या है जमाना अब वाह वाह वाह जनाब क्या खूब शे'र है
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 24, 2014 at 6:22pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बधाई

Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 2:57pm

ग़ज़ल की बादशाहत छोड़ दी हमने
ये हमसे चाहता क्या है जमाना अब 

आदरणीय वीनस जी ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service