For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२  २१२२ २१२

तुमने पुरखों की हवेली बेच दी

शान दुःख सुख की सहेली बेच दी

भूख दौलत की मिटाने के लिए

मौत को दुल्हन नवेली बेच दी

जिस्म के बाजार ऊंचे दाम थे

गाँव की राधा चमेली बेच दी

बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर

तुमने बच्चों  की हथेली बेच दी

गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन

प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anurag Prateek on December 25, 2014 at 9:07pm

जबसे  पुरखों की हवेली बेच दी

तुमने सुख-दुःख  की सहेली बेच दी

भूख दौलत की मिटाने के लिए

मौत को दुल्हन नवेली बेच दी-- मौत कुछ खरीदती नहीं ,

जिस्म के बाजार ऊंचे दाम थे--(मिसरा अधूरा है ) जिस्म के बाजार की कीमत बहुत 

गाँव की राधा चमेली बेच दी

बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर

तुमने बच्चों  की हथेली बेच दी--- अच्छा है 

गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन

प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी- सामान्य 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 24, 2014 at 9:02pm

बहुत ही सुन्दर! एक से बढ़कर एक पंक्तियाँ और गहरे भाव!

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 24, 2014 at 7:47am

धन्यवाद दोस्तो

Comment by harivallabh sharma on December 23, 2014 at 11:34pm

लाजबाब  गजल आदरणीय Gumnam Pithoragarhi साहब..बधाई..आपको.

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 23, 2014 at 10:49pm
बहुत सुन्दर वाह

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 23, 2014 at 10:32pm

अच्छी ग़ज़ल, दाद कुबूल करें .

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 23, 2014 at 6:21pm

शुक्रिया दोस्तो आप लोगो की सराहना और सलाह हमेशा लिखने के लिए प्रेरित करते है ,,,, शिज्जु "शकूर जी शुक्रिया

Comment by Hari Prakash Dubey on December 23, 2014 at 5:59pm

गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन

प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी

आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी . सुन्दर प्रस्तुति .हार्दिक बधाई !

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on December 23, 2014 at 5:40pm

तुमने पुरखों की हवेली बेच दी

शान दुःख सुख की सहेली बेच दी..... आपकी टीसभरी भावना से लबरेज इस रचना के लिये शब्द नहीं....... अतिसुंदर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 23, 2014 at 3:51pm

गुम् नाम जी

सुन्दर गजल i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
30 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service