वो घर ग़मज़दा था
ग़म का मैक़दा था
कुछ चिंगारियां थी
बाकी तो धुंआ था
हवा की सरसराहट
अजब सन्नाटा था
दरो दीवार सीली थी
वो रात भर रोया था
शक इक वज़ह थी
घर बिखर गया था
.
मुकेश इलाहाबादी ---
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
jee - shukria Saurabh Pandey jee - Giriraj jee kee baat dhyaan me hai - shukiraa
आदरणीय गिरिराज भाई ने मतले में काफ़िया को लेकर इंगित किया है. उसे आप देख लेंगे, आदरणीय मुकेशभाईजी.
ग़ज़ल के अश’आर अच्छी कहन के साथ प्रभावित करते हैं. शुभ-शुभ
AADARNEEYA MANJARI JEE AUR GIRIRAJ JEE - GAZAL PASANDGEE KE LIYE BAHUT BAHUTA AABHAAR - GIRIRAAJ JEE AAPKEE SALAAHIYAT KE LIYE BAHUT BAHUT SHUKRIAA KOSHISH RAHEGEE KEE MTLAA DURUST KAR SAKOON - AADAR SAHIT - MUKESH
आदरणीय मुकेश भाई , बहुत सुन्दर भाव और विचार पिरोये हैं आपके अपनी रचना में , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
आदरणीय , मतले मे काफिया जो आपने लिया है उसे बाक़ी अशआर मे नही निभा पाये हैं , मतला सुधार कर , आ - काफिया मे आप पूरी गज़ल को ला सकते हैं ॥
bahut bahut aabhaar Dr.Gopal Narayan Srivastava jee aur Laxman Dhami jee - is hauslaa aafzaee ke liye
आ0 भाई मुकेश जी छोटी बहर की एक सुन्दर सी गजल कहने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
शक इक वज़ह थी
घर बिखर गया था------- बहुत खूब i बहुत से घर महज शक से बर्बाद हुए हैं i
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