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बह्र : २१२ २१२ २१२

-----------

जाल सहरा पे डाले गए

यूँ समंदर खँगाले गए

 

रेत में धर पकड़ सीपियाँ

मीन सारी बचा ले गए

 

जो जमीं ले गए हैं वही

सूर्य, बादल, हवा ले गए

 

सर उन्हीं के बचे हैं यहाँ

वक्त पर जो झुका ले गए

 

मैं चला जब तो चलता गया

फूट कर खुद ही छाले गए

 

जानवर बन गए क्या हुआ

धर्म अपना बचा ले गए

 

खुद को मालिक समझते थे वो

अंत में जो निकाले गए

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2014 at 9:59pm

आपका आशीर्वाद पाकर गद्गद हूँ आदरणीया  कल्पना जी, स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2014 at 9:58pm

बहुत बहुत शुक्रिया बागी जी स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2014 at 9:58pm

बहुत बहुत शुक्रिया  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:49pm

आदरणीय धर्मेंद्र जी छोटी बह्र में लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सादर बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2014 at 11:30am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , बहुत कम शब्दों मे , छोटी बह्र मे , लाजवाब बातें कही है आपने , आपको पूरी गज़ल के लिये दिली बधाइयाँ ॥

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 7, 2014 at 6:50pm

आ0 धमेन्द्र भाईजी,   बेहतरीन गजल हुई है।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 6:06pm

इस  शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 4:58pm

वाह आदरणीय भाई जी वाह बेहतरीन अशआरों से पगी शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये दिली दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 7, 2014 at 4:27pm

जाल सहरा पे डाले गए
यूँ समंदर खँगाले गए------------बहुत सुंदर

रेत में धर पकड़ सीपियाँ
मीन सारी बचा ले गए-----ह्रदय स्पर्शी

जो जमीं ले गए हैं वही
सूर्य, बादल, हवा ले गए
सभी शेर शानदार हैं ,बहुत सुन्दर ...बढ़िया ग़ज़ल हुई है आ० धर्मेन्द्र जी बधाई आपको

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 7, 2014 at 2:47pm

सर उन्हीं के बचे हैं यहाँ

वक्त पर जो झुका ले गए

 

मैं चला जब तो चलता गया

फूट कर खुद ही छाले गए

 

जानवर बन गए क्या हुआ

धर्म अपना बचा ले गए

 

खुद को मालिक समझते थे वो

अंत में जो निकाले गए....धर्मेन्द्र जी ये चाए रों शेर बहुत पसंद आये ...मेरी तरफ से हार्दिक बधाई सादर 

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