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दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर
 
होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।
उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर ।।

भाग्य भरोसे कब भला, करवट ले तकदीर ।
बिना करम के जिंदगी, जैसे लगे फकीर ।।

बिना कर्म इंसान की, बदली कब तकदीर ।
श्रम बदले संसार में, जीने की तस्वीर ।।

चाहो जो संसार में, मन वांछित परिणाम ।
नजर निशाने पर करे, संभव हर संधान ।।

भाग्य भरोसे कब हुआ, जीवन का उद्धार ।
चाबी श्रम की खोलती, किस्मत का हर द्वार ।।

बिछा हुआ हर हाथ में, रेखाओं का जाल ।
किस रेखा में क्या छुपा, काल न जाने हाल ।।

सभी चाहते  बस मिले, बिना श्रांति परिणाम  ।
रचें लकीरें हाथ की, स्वर्णिम सा बस धाम ।।

सुशील सरना 11-4-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on April 26, 2025 at 1:11pm
आदरणीय गिरिराज जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । मुझे तो कलों के हिसाब से सही लग रहा है । थोड़ा स्पष्ट कर देंगे तो आभारी रहूँगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 18, 2025 at 4:42pm

आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई 

आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये  ख़ास कर  पहला पद 

कृपया ध्यान दे...

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