For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमें वो वेवफा कह कर बुलाते है सितम देखो
चुरा कर नीद रातो की सताते है सितम देखो

कभी मै देखता भी तो नहीं था जाम के प्‍याले
कसम दे कर मुझे अपनी पिलाते है सितम देखो

बडे अरमान से जिसने  बनाया आशिया मेरा
वही उस आशिये को अब जलाते है सितम देखो

न रूठे वो कभी हमसे हमारे साथ चलते थे
मगर अब साथ गैरो का निभाते है सितम देखो

खुले जो लब कभी जिनके हमारा नाम ही निकले
न जाने क्‍यो वही हमको भुलाते है सितम देखो

मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 682

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 10:36am

आदरणीय अखंड भाई , गज़ल खूब सूरत कही है , बधाइयाँ ॥ आ. शिज्जु भाई , निलेश भाई की बातें का खयाल करें ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 1, 2014 at 10:10am

वाह्ह्ह... बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है अखंड जी मजा आ गया पढ़ के ,आ० नीलेश जी का सुझाव सही है ,वहीँ पर मैं भी अटकी हूँ आशियाना होता है आशिया नहीं. आप इस शेर को यूँ कह सकते हैं ----बडे अरमान से जिसने  बनाया आशियाना था 
वही उस आशियाने को  जलाते   है सितम देखो| ---एक बात और ---उला में जिसने आ रहा है तो जलाते आने से दोष पैदा हो रहा है या तो जलाता आता किन्तु वो काफिये में नहीं आ सकता इसलिए आपको जिसने को ही चेंज करना पड़ेगा ----जैसे कर सकते हैं --बडे अरमान से दिल से  बनाया आशियाना था -----   फिलहाल ढेरों बधाई आपको |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 10:03am

आदरणीय अखंड जी, बहुत सुंदर गजल प्रस्तुति.दिली बधाई आपको


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 30, 2014 at 10:24pm

ग़ज़ल अच्छी लगी, आदरणीयभाई निलेश जी ने बढ़िया सुझाव दिया है, बधाई स्वीकार करें। 

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 9:05pm
बहुत सुन्दर प्रयास। आपको बधाई।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 30, 2014 at 5:59pm

बहुत खूब ग़ज़ल के लिए बधाई ..
.
वही उस आशिये को अब जलाते है सितम देखो... इस आशिए में थोड़ी उलझन है 
वही उस आशियाने को जलाते है सितम देखो... ऐसा बेहतर होगा शायद 
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 3:19pm

आदरणीय अखंड भाई मेहनत आपकी रचनाओं में नज़र आ रही है बहुत बहुत बधाई
एक बात और जाम और प्याला समानार्थी शब्द हैं।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 12:41pm

गहमरी जी

अति सुन्दर  i बेहतरीन i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2014 at 11:32am

आ० भाई गहमरी जी , ग़ज़ल अच्छी हुई इसके लिए हार्दिक बधाई कबूलें l दूसरे शेर में संभवत्यः कसम की जगह कमस हो गया है इसे दुरस्त कर लें l शुभ -शुभ ....  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service