किसी की अधखिली अल्हड़ जवानी याद आती है
मुझे उस दौर की इक-इक कहानी याद आती है
जिसे मैं टुकड़ा-टुकड़ा करके दरिया में बहा आया
लहू से लिक्खी वो चिठ्ठी पुरानी याद आती है
मैं जिससे हार जाता था लगाकर रोज़ ही बाज़ी
वही कमअक्ल, पगली, इक दीवानी याद आती है
जो गुल बूटे बने रूमाल पे उस दस्ते नाज़ुक से
कशीदाकारी की वो इक निशानी याद आती है
जो गेसू से फ़िसलकर मेरे पहलू में चली आई
वो ख़ुशबू से मोअत्तर रातरानी याद आती है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
मैं जिससे हार जाता था लगाकर रोज़ ही बाज़ी
वही कमअक्ल, पगली, इक दीवानी याद आती है
सुन्दर भाव ..प्रेम छलक पड़ा ...वो प्रेम भूलता कहाँ है
भ्रमर ५
आदरणीय , खूब सूरत ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ ॥
मैं जिससे हार जाता था लगाकर रोज़ ही बाज़ी
वही कमअक्ल, पगली, इक दीवानी याद आती है.......
क्या कशिश भरे अंदाज में जख्म कुरेद है आदरणीय सुशील भाई . बहुत बहुत हार्दिक बधाई .
जिसे मैं टुकड़ा-टुकड़ा करके दरिया में बहा आया
लहू से लिक्खी वो चिठ्ठी पुरानी याद आती है.......बहुत सुंदर, बधाई आदरणीय शुशील जी
sundar rachna
आदरणीय सुशील ठाकुर जी, बीते दिन, गुजरे लम्हे, मीठी स्मृतियाँ रचना का श्रृंगार कर रहे हैं, बधाई.....................
//जो गेसू से फ़िसलकर मेरे पहलू में चली आई
वो ख़ुशबू से मोअत्तर रातरानी याद आती है// वाह क्या कहने
जिसे मैं टुकड़ा-टुकड़ा करके दरिया में बहा आया
लहू से लिक्खी वो चिठ्ठी पुरानी याद आती है.....बहुत सुंदर.
waah khoob sir ji,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई................ |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online