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हसींन जुल्फ कहीं पर बिखर रही होगी
हवा है महकी उधर से गुजर रही होगी
फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम
कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी
जमी पे आज हैं बिखरे तमाम आंसू यूं
ग़मों में डूबी ये शब किस कदर रही होगी
मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी
जो जान हम पे छिड़कती उसे नहीं देखा
वो झिर्रियों से ही तकती नजर रही होगी
हसी के भाल की बिंदी फलक पे देखी है
बड़ी हसीन सी यारों सहर रही होगी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह क्या कहने सर बहुत उम्दा अशआर कहे हैं आदरणीय
हसींन जुल्फ कहीं पर बिखर रही होगी
हवा है महकी उधर से गुजर रही होगी
मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी...........जिंदाबाद शेर
बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय डा.आशुतोष जी, दिली बधाई आपको
मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी ।
आदरणीय भाई आशुतोष जी क्या खूब ग़ज़ल कही , इस शे'र के जरिये आपने सचमुच लड़कपन के दिन याद दिल दिए . हार्दिक बधाई .
मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी ।
क्या कहूँ आदरणीय आशुतोष जी इस मोबाइल massage सोशल साइट के ज़माने में
आपकी ये पंक्तियाँ उस मोहब्बत की दास्ताँ फिर से कहती हैं जिसमें खतों का अहम रोल
होता था। ......................
बहुत ही बेहतरीन बहुत ही खूबसूरत ।
मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी-----जबरदस्त शेर ...क्या कहने !!!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई आपको
वाह्ह सर क्या खूब ग़ज़ल हुई है। निशब्द!!!!
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