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इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं

1222 1222 1222 1222

इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं
कहूं मरहम इन्हें या खंजरों का वार ही समझूं

कशिश बातों में तेरी अब अजब सी मुझको लगती है
कहूं बातों को बातें या इन्हें इकरार ही समझूं

वो डर के भेडियो से आज मेरे पास आये हैं
कहूं हालात इसको या कि फिर एतवार ही समझूं

झरे आँखों से आंसू आज तो बरसात की मानिंद
कहूं मोती इन्हें या सिर्फ मैं जलधार ही समझूं

तेरी नजरों ने कैसी आग सीने में लगाई है
गुनहगारों सा मानूं तुमको या दिलदार ही समझूं

नहीं खिड़की पे आती आजकल क्या बात है बोलो
युँ तुम शरमा रही हो या इसे इनकार ही समझूं

पड़े ओंठो पे ताले पलके उठती और गिरती हैं
इसे मैं जीत ही मानू या इसको हार ही समझूं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by gumnaam pithoragarhi on April 20, 2014 at 12:28pm

लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by ram shiromani pathak on April 20, 2014 at 10:43am

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय  ..........  हार्दिक बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on April 19, 2014 at 8:13pm

सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 2:57pm

आदरणीय आशुतोष सर बहुत सुन्दर ग़ज़ल सभी अशआर अच्छे लगे, इसकी तक्तीअ पुनः करे लें. इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.

गुनहगारों सा मानूं तुमको या दिलदार ही समझूं ... बह्र में नहीं है


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2014 at 7:17pm

आदरनीय आशुतोष भाई , बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , मेरी दिली दाद स्वीकार करें !!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 11:13am

आदरणीय आशुतोष भाई , इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 17, 2014 at 10:55am

नहीं खिड़की पे आती आजकल क्या बात है बोलो
युँ तुम शरमा रही हो या इसे इनकार ही समझूं................वाह! क्या बात कही, पुरानी यादों को ताजा कर दिया आपने

पड़े ओंठो पे ताले पलके उठती और गिरती हैं
इसे मैं जीत ही मानू या इसको हार ही समझूं..............बहुत बहुत सुंदर

आदरणीय डा.आशुतोष जी, इस लाजवाब गजल पर आपको तहे दिल से बधाई

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 16, 2014 at 12:55pm

वाह्ह्ह्ह्ह क्या बात है, सर बहुत उम्दाह्ह!! 

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