For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ के हाथों सूखी रोटी का मजा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122        2122         212

आँसुओं को यूँ  मिलाकर  नीर में

ज्यों  दवा  हो  पी  रहा हूँ  पीर में

**

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में

**

कौन  डरता   जाँ  गवाने  के  लिए

रख जहर जितना हो रखना तीर में

**

हर तरफ उसके  दुशासन डर गया

मैं न था कान्हा  जो बधता चीर में

**

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में

**

शायरी  कहता  रहा उलझन भरी

शब्द  बध  पाये  नहीं  जंजीर में

******

रचना मौलिक और अप्रकाशित

Views: 801

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 26, 2014 at 5:30pm

आदरणीय लक्ष्मण जी   इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मेरी तरफ से हार्दिक बधाई सादर 

Comment by कल्पना रामानी on May 22, 2014 at 8:37pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत सुंदर गजल कही है आपने, दिली बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 8, 2014 at 6:31pm

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में |    बेहतरीन !!

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में |  वाह वाह !!

बहुत अच्छी ग़ज़ल, आदरणीय लक्ष्मण भाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 5, 2014 at 1:48pm

आदरणीय लक्ष्मणजी बेहतरीन ग़ज़ल है दिली दाद कुबूल करें

Comment by Maheshwari Kaneri on April 20, 2014 at 7:44pm

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में.....बहुत ही भावपूर्ण रचना...

Comment by vijay nikore on April 20, 2014 at 11:55am

 

बहुत अच्छी गज़ल कही है। बधाई।

Comment by वेदिका on April 19, 2014 at 11:58pm
आँसुओं को यूँ मिलाकर नीर में
ज्यों दवा हो पी रहा हूँ पीर में//
बहुत खूब मतला हुआ है,
बढ़िया गजल पर हार्दिक बधाई
Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 5:42pm

बेहतरीन बहुत ही उम्दा ग़ज़ल सभी अशआर पसंद आये खासकर ये दो अधिक पसंद आये इनके लिए विशेषतौर से बधाई स्वीकारें.

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में .. बहुत ही लाजवाब शेअर

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में.. बेहतरीन

हर तरफ उसके  दुशासन डर गया

मैं न था कान्हा  जो बधता चीर में .. मुझे ये शेअर स्पष्ट नहीं लगा.

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 19, 2014 at 4:57pm

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में

**

शायरी  कहता  रहा उलझन भरी

शब्द  बध  पाये  नहीं  जंजीर में

वाह सर बहुत खूब बधाई स्वीकारें

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on April 19, 2014 at 1:17pm

हाथ की रेखा मिटाकर चल दिया
क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में

बहुत अच्छी रचना सर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service