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मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

१२१२     ११२२    १२१२     २२

हसींन जुल्फ कहीं पर बिखर रही होगी

हवा है महकी उधर से गुजर रही होगी

 

फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम

कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी

 

जमी पे आज हैं बिखरे तमाम आंसू यूं

ग़मों में डूबी ये शब किस कदर रही होगी

 

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी

 

जो जान हम पे छिड़कती उसे नहीं देखा

वो झिर्रियों से ही तकती नजर रही होगी

 

हसी के भाल की बिंदी फलक पे देखी है

बड़ी हसीन सी यारों सहर रही होगी

 

  

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 24, 2014 at 7:43pm

प्रिय के एहसासों को समेटती नजाकत भरी ग़ज़ल 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by vijay nikore on April 20, 2014 at 12:15pm

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by Saarthi Baidyanath on April 20, 2014 at 11:25am

बहुत ही खुबसूरत एहसास हैं जनाब ....लाजवाब

फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम

कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी...क्या बात ..क्या बात 

 

Comment by ram shiromani pathak on April 20, 2014 at 10:44am

अहा क्या कहने बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय  ..........  हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 8:28pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल .. बधाई ..

Comment by बृजेश नीरज on April 19, 2014 at 8:16pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है! सभी अशआर उम्दा हैं! आपको बहुत बधाई! इन दो अशआर पर विशेष बधाई-

//मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी//

//हसी के भाल की बिंदी फलक पे देखी है

बड़ी हसीन सी यारों सहर रही होगी//

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 3:26pm

आदरणीय आशुतोष सर खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on April 18, 2014 at 1:29am

खूबसूरत  गज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई...सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2014 at 7:22pm

वाह ! भाई आशुतोष जी , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है , पूरी गज़ल बहुत उम्दा कही ! पूरी गज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें ॥

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 3:43pm

आदरणीय आशुतोष जी
ज़िंदगी से लबरेज इस ग़ज़ल पर मेरी तरफ से हज़ारों दाद हाजिर है

फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम

कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी

जमी पे आज हैं बिखरे तमाम आंसू यूं

ग़मों में डूबी ये शब किस कदर रही होगी

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी


जो जान हम पे छिड़कती उसे नहीं देखा

वो झिर्रियों से ही तकती नजर रही होगी

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