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अभी तो म्यान देखी है अभी तलवार देखोगे
हिरन के सींग देखे सींग की तुम मार देखोगे
बहुत खुश होते हो परदे के जिन अश्लील चित्रों पर
बहुत रोओगे जब घर पर यही बाज़ार देखोगे
जिस्म की मंडियों में डोलते हो बन के सौदागर
करोगे खुदकशी बेटी को जब लाचार देखोगे
नदी, नाले, तलैया-ताल यारों देखकर सँभलो
नहीं तो तुम सड़े पानी का पारावार देखोगे
अभी भाता बहुत है ये सफ़र पूरब से पश्चिम का
बहुत तडपोगे जब जीवन में हाहाकार देखोगे
अभी तुम खूब सजदे कर रहे पश्चिम की नागिन का
रहा ये हाल तो पश्चिम का फिर दरवार देखोगे
हज़ारों सांप अस्तीनी, छुपे हैं भेंडिये लाखों
अभी जयचंद जैसे कितने ही गद्दार देखोगे
हज़ारो पीढ़ियों पे अपनी था जिस नीम का साया
अभी उस पर तो क्या निज साँस पर अधिकार देखोगे
मौलिक व अप्रकाशित
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नदी, नाले, तलैया-ताल यारों देखकर सँभलो
नहीं तो तुम सड़े पानी का पारावार देखोगे
अभी भाता बहुत है ये सफ़र पूरब से पश्चिम का
बहुत तडपोगे जब जीवन में हाहाकार देखोगे... . .
बहुत खूब आदरणीय आशुतोष भाई. यह एक ऐसा तथ्य है जो एक चुभती हुई सच्चाई है, जिसे आपने साझा किया है. बधाई !
जिस्म को जिसम क्यों पढ़वाना चाहते हैं आप ? ऐसा उच्चारण तो हिन्दीवालो ने भी नहीं अपनाया है. इस हिसाब से वो मिसरा बह्र से बाहर हो गया है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय लक्ष्मण जी ..स्नेहिल शब्दों के लिए तहे दिल आभार ..सादर
आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत लाजवाब ग़ज़ल कही है , हर शे र एक से बढ़ के एक हैं , किसी एक को आज नही चुन सकता .पश्चिमी सभ्यता के प्रेमियों को जिस भविष्य के प्रति सचेत होने कि सलाह दी है वह महत्वपूर्ण है .इसके दुस्परिनाम तो सभी को हेलने पड़ेंगे . पूरी ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाईयाँ
आदरणीय अखिलेश भाईसाब ..आप सतत ही मेरा हौसला बढाते हैं ..बस यूं ही स्नेह बनाए रखें सादर
बहुत खुश होते हो परदे के जिन अश्लील चित्रों पर
बहुत रोओगे जब घर पर यही बाज़ार देखोगे......... बहुत तीखा व्यंग्य किया है पश्चिमी सभ्यता के प्रेमियों पर
जिस्म की मंडियों में डोलते हो बन के सौदागर
करोगे खुदकशी बेटी को जब लाचार देखोगे
हार्दिक बधाई आशुतोष भाई
अरुण जी ..कमाल की पैनी नज र है आपकी ..बहुत देर तक तो मैं खुड भ्रमित था ..सही है काफिया वार देखोगे हो गया है ..इसमें संशोधन करके यदि हिरन के सींग देखे सींग की तुम धार देखोगे ..कर दिया जाए या कोई और उचित परामर्श देने का कष्ट करें ..सादर
आदरणीय आशुतोष सर काफिया कहाँ है ? कृपया आप भी जाँच लें.
आदरणीय गिरिराज भाई साब ये मेरे कालेज जीवन की ग़ज़ल थी ..उसे ग़ज़ल के नियमों के अनुरूप परिवर्तित किया था ..ग़ज़ल आपको पसंद आयी ...आपके शब्द मुझे सतत श्रजन में उर्जा प्रदान करते हैं ..सादर
आदरणीय शिज्जू जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..बस यूं ही आप का स्नेह मिलता रहे ..सादर
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