जिंदगी जब से सधी होने लगी
जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी
डूब कर हमने जिया है काम को
काम से ही अब ख़ुशी होने लगी
हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी
नेक दिल की बात करते है चतुर
हर कहे अक से बदी होने लगी
चाँद पूनम का खिला जब यूँ लगा
यादें दिल की फिर कली होने लगी
------- शशि पुरवार
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
सुधीजनों ने अपनी बातें कहीं. आप समुचित ध्यान दें.
शुभकामनाएँ.
अच्छी कोशिश है..मुबारकबाद
हार्दिक बधाई
अच्छा प्रयास शशि जी
आदरणीय वीनस जी आभार आपकी गजल पर प्रतक्रिया सुखद प्रतीत हो रही है। आभार , आपने जो मार्गदर्शन किया है गजल को दुरुस्त करती हूँ। बहुत दिनों बाद रुकी कलम को घिसा है , बदलाव करती हूँ और भी कई शेर लिखे है उन्हें भी जोड़ देती हूँ। बहुत बहुत आभार
यदा अक ... जैसे शब्द भर्ती के प्रतीत हो रहे हैं क्योकि ये अपने वाक्य के साथ सामंजस्य बैठाने में असफल हैं
इता दोष भी दिख रहा है
पूनम का चाँद खिला तो दिल के कली होने का भाव भी कांट्रास्ट पैदा नहीं कर पा रहा है
आपने इससे कहीं अच्छी ग़ज़लें पढवाई हैं,, कई दिन बाद सक्रीय हुआ हों देखता हूँ आपकी वाल पर शायद कुछ और अच्छा पढने को मिले ....
आदरणीय राजेशकुमारी जी तहे दिल से आभार , गजल पोस्ट करते समय लगा शब्द शायद मिट गया था।
आभार अदरणीय गणेश जी। आपने सुधार कर दिया , उस दिन दो बार गजल पोस्ट की एरर आ रहा था ,
आभार आपने गजल की समीक्षा की।
//डूब कर हमने जिया था काम को
काम से ही अब अली होने लगी//
यह शेर कुछ समझ में नहीं आ रहा .……………। आदरणीय इस शेर में यह कहना चाहा है कि काम को ही पूरी तरह से जिया है डूब कर और काम से ही पहचान होने लगी है। --यहाँ अली की जगह ख़ुशी है। इसे अभी सुधारते है
//नेक दिल की बात करते है चतुर -- चतुर की जगह छली लिया था जिसमे दोष था इसीलिए चतुर लेना पड़ा।
हर कहे अक से बदी होने लगी//
आदरणीय आशीष जी , शकूर जी तहे दिल से आभार
आदरणीया शशिजी ग़ज़ल पे अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें
हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी |
बहुत खूब !!
//जिंदगी जब से सधी होने लगी
जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी//
वाह वाह, सुन्दर मतला, उला में "लगी" छुट गया था जिसे मैंने ठीक कर दिया है,
//डूब कर हमने जिया था काम को
काम से ही अब अली होने लगी//
यह शेर कुछ समझ में नहीं आ रहा .
//हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी//
अरे वाह,बहुत बढ़िया,अच्छा शेर है .
//नेक दिल की बात करते है चतुर
हर कहे अक से बदी होने लगी//
ठीक है।
//चाँद पूनम का खिला जब यूँ लगा
यादें दिल की फिर कली होने लगी //
यह बढ़िया है, कुल मिलाकर ग़ज़ल पर बढ़िया प्रयास हुआ है, बधाई आदरणीया शशी जी।
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