For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल - शशि पुरवार

जिंदगी जब से सधी होने लगी
जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी

डूब कर हमने जिया है काम को
काम से ही अब ख़ुशी होने लगी

हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी

नेक दिल की बात करते है चतुर
हर कहे अक से बदी होने लगी

चाँद पूनम का खिला जब यूँ लगा
यादें दिल की फिर कली होने लगी


------- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 2:14am

सुधीजनों ने अपनी बातें कहीं. आप समुचित ध्यान दें.

शुभकामनाएँ.

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 25, 2014 at 8:43am

अच्छी कोशिश है..मुबारकबाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2014 at 9:12pm

हार्दिक बधाई

Comment by Sarita Bhatia on March 24, 2014 at 10:15am

अच्छा प्रयास शशि जी 

Comment by shashi purwar on March 24, 2014 at 9:57am

आदरणीय वीनस जी आभार आपकी गजल पर प्रतक्रिया सुखद प्रतीत हो रही है।  आभार , आपने जो मार्गदर्शन किया है गजल को दुरुस्त करती हूँ।  बहुत दिनों बाद रुकी कलम को घिसा है , बदलाव करती हूँ और भी कई शेर लिखे है उन्हें भी जोड़ देती हूँ। बहुत बहुत आभार

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 12:45am

यदा अक ... जैसे शब्द भर्ती के प्रतीत हो रहे हैं क्योकि ये अपने वाक्य के साथ सामंजस्य बैठाने में असफल हैं

इता दोष भी दिख रहा है
पूनम का चाँद खिला तो दिल के कली होने का भाव भी कांट्रास्ट पैदा नहीं कर पा रहा है

आपने इससे कहीं अच्छी ग़ज़लें पढवाई हैं,, कई दिन बाद सक्रीय हुआ हों देखता हूँ आपकी वाल पर शायद कुछ और अच्छा पढने को मिले  ....

Comment by shashi purwar on March 23, 2014 at 9:56pm

आदरणीय राजेशकुमारी जी तहे दिल से आभार , गजल पोस्ट करते समय लगा शब्द शायद मिट गया था।  

आभार अदरणीय गणेश जी।  आपने सुधार कर दिया , उस दिन दो बार गजल पोस्ट की एरर आ रहा था ,

आभार आपने गजल की समीक्षा की।

//डूब कर हमने जिया था काम को
काम से ही अब अली होने लगी//
यह शेर कुछ समझ में नहीं आ रहा .……………। आदरणीय इस  शेर में यह कहना चाहा है कि काम को ही पूरी तरह से जिया है डूब कर और काम से ही पहचान होने लगी है। --यहाँ अली की जगह ख़ुशी है।  इसे अभी सुधारते  है

//नेक दिल की बात करते है चतुर -- चतुर की जगह छली लिया था जिसमे दोष था इसीलिए चतुर लेना पड़ा। 
हर कहे अक से बदी होने लगी//

आदरणीय आशीष जी , शकूर जी तहे दिल से आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 23, 2014 at 7:05pm

आदरणीया शशिजी ग़ज़ल पे अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 23, 2014 at 4:12pm

हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी |

बहुत खूब !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 23, 2014 at 11:59am

//जिंदगी जब से सधी होने लगी
जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी//

वाह वाह, सुन्दर मतला, उला में "लगी" छुट गया था जिसे मैंने ठीक कर दिया है,

//डूब कर हमने जिया था काम को
काम से ही अब अली होने लगी//
यह शेर कुछ समझ में नहीं आ रहा .

//हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी//
अरे वाह,बहुत बढ़िया,अच्छा शेर है .

//नेक दिल की बात करते है चतुर
हर कहे अक से बदी होने लगी//

ठीक है।

//चाँद पूनम का खिला जब यूँ लगा
यादें दिल की फिर कली होने लगी //

यह बढ़िया है, कुल मिलाकर ग़ज़ल पर बढ़िया प्रयास हुआ है, बधाई आदरणीया शशी जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service