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ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-ऐब खुद में ....

ऐब खुद के ढूंढकर उनसे किनारा कर लिया,
उस जहाँ के वास्ते थोडा सहारा कर लिया.
...

एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,  
क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.
...

दर्द हद से बढ़ गया, लेनें लगा फिर जान जब,
दर्द हम जीने लगे उसको ही चारा कर लिया.
...

इक तरफ़ तो मौत थी औ इक तरफ़ बेइज्ज़ती,
और हम करतें भी क्या, मरना गवारा कर लिया.
...

वो हमारे दिल को तोड़ें, था हमें मंज़ूर कब,
हमने ही खुद दिल को अपने पारा पारा कर लिया.
...

एक तुम जो हर ख़ुशी के बीच थे पर खुश न थे,
एक हम थे ग़म में डूबे, पर गुज़ारा कर लिया.
...

उम्र अपनें साथ लाई हिचकिचाहट का हिज़ाब,
बचपनें में जी में आया तब इशारा कर लिया.
...

खेल हो बच्चों का जैसे, छोड़ दी यूँ सल्तनत,
गेरुए कपड़ों में गौतम ने गुज़ारा कर लिया.   
...............................................................
निलेश 'नूर'
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 12, 2013 at 9:13am

बहू बहुत आभार आदरणीय सौरभ सर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2013 at 11:39pm

बहुत खूब !

पहला शेर वाकई कमाल-धमाल हुआ है.  वाकई नज़ारा कर लिया. ..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 7, 2013 at 6:43am

धन्यवाद शिज्जु जी, जितेन्द्र जी ...आप की दाद से हौसला मिला है ...
शुक्रिया आदरणीय वीनस जी .... शेर आप तक पहुंचा टी लिखना सफल हुआ ...आभार  

Comment by वीनस केसरी on December 7, 2013 at 1:20am

एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,  
क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.

बहुत खूब ,,, इस एक शेर के लिए ढेरो दाद ... सबसे अलग मिजाज का शेर हुआ है

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 6, 2013 at 9:19am

बहुत शानदार गजल, यह शेर खास पसंदीदा हुए दिली दाद कुबूल करें आदरणीय निलेश जी

दर्द हद से बढ़ गया, लेनें लगा फिर जान जब,
दर्द हम जीने लगे उसको ही चारा कर लिया.
.

एक तुम जो हर ख़ुशी के बीच थे पर खुश न थे,
एक हम थे ग़म में डूबे, पर गुज़ारा कर लिया...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 6, 2013 at 7:58am

//एक तुम जो हर ख़ुशी के बीच थे पर खुश न थे, 
एक हम थे ग़म में डूबे, पर गुज़ारा कर लिया.// वाह बहुत खूब आदरणीय निलेश जी

इस ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 6, 2013 at 7:53am

धन्यवाद आदरणीय आशुतोष जी. 
आदरणीय राम शिरोमणि जी "क्या ही था वो एक पल", क्या क्या नज़ारा कर लिया...बहुत बार जब कोई बात, कोई जलवा, कोई अनुभव जब शब्दातीत होता है तो यूँ कहा जाता है... "क्या बताएँ या क्या कहें कि क्या हुआ"" उसी को कहने का प्रयास है .... ये वो मेस्मराइजेशन की अवस्था है जिसमे नज़ारा करने वाला स्वयं उस इफ़ेक्ट से बाहर नहीं हुआ है .... जैसे कोई चमत्कार देखा हो या कोई अलौकिक अनुभव हुआ हो .....
बचपनें में जी में आया   ..... यहाँ सामान्य बोलचाल की भाषा को शाइरी से जोड़ने का प्रयास किया है ...उम्र बदने के साथ बचपन तो गया है ...बचपना भी चला गया ..यहाँ रेफरेंस बचपन नहीं ..बचपना है ..... हो सकता है मै बात को ठीक से नहीं कह पाया तभी आप को कुछ खटका है .... मंच के गुनीजनों से सीखते सीखते शायद ये कमीं भी पूरी हो जाएगी. ग़ज़ल पसंद करने हेतु आभार  

Comment by ram shiromani pathak on December 6, 2013 at 1:23am

आदरणीय निलेश जी,सुन्दर ग़ज़ल कही है बधाई स्वीकारें......

एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,  
क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.//////// यहाँ कुछ खटक रहा है 

उम्र अपनें साथ लाई हिचकिचाहट का हिज़ाब, 
बचपनें में जी में आया तब इशारा कर लिया////////////// यहाँ कुछ खटक रहा है 

निवेदन है कृपा कर मार्गदर्शन करें ///////सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 5, 2013 at 9:26pm

आदरणीय निलेश जी ..हर शेर कमाल का है ,,मेरी तरफ से हार्किक्बधाई ,,सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 5, 2013 at 5:53pm

धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण जी, बैद्यनाथ जी, सुशिल जी, गिरिराज जी, मीना जी, अरून शर्मा जी, विजय मिश्र जी ....आप सबके स्नेह से हिम्मत मिलती है ...
आभार      

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