For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -निलेश 'नूर' -लोग फिर

ग़ज़ल 
लोग फिर बातें बनाने आ गए,
यार मेरे, दिल दुखाने आ गए. 
...

जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,
मौत को जो घर दिखाने आ गए.
...

रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,
आप पहले ही मनाने आ गए. 
...

दो घडी बैठो, ज़रा बातें करो,
ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.
...

जेब अपनी जब कभी भारी हुई,      
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.
...

राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,
याद कुछ चेहरे पुराने आ गये. 
............................................................
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Views: 605

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 12, 2013 at 9:12am

जी मैंने इस विषय पर चिंतन कर रहा हूँ ... जैसे ही कोई तरमीम सूझती है, बदलाव का निवेदन करूँगा.
सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2013 at 12:57am

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है, आदरणीय !  विलम्ब से इस ग़ज़ल पर आया हूँ, इसका खेद है.

गुणीजनों के सारे सुझावो पर ध्यान दे रहे होंगे. मैं आश्वस्त इसलिये हूँ कि आप एक गंभीर और अपने प्रति निर्मम प्रयासकर्ता हैं.

इता दोष पर अवश्य आलेख देख जायें

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 7, 2013 at 6:46am

शुक्रिया सभी को .... 
इस ग़ज़ल के मतले में इता दोष है ... अब इसे सुधारना ...ग़ज़ल रचने से अधिक कठिन चुनोती है ....
उम्मीद है कि आप सब के स्नेह और साथ से इसे दुरुस्त कर पाऊंगा 
पुन: आभार 

Comment by vandana on December 4, 2013 at 6:46am

...

जेब अपनी जब कभी भारी हुई,      
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.
...

राह से गुज़रा पुरानी जब कभी, 
याद कुछ चेहरे पुराने आ गये. 

बहुत बढ़िया आदरणीय नीलेश जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2013 at 6:35am

आदरणीय नूर जी ..हर शेर जानदार ..वर्तमान परिदृश्य का बेहतरीन खाका खींचा है आपने ..आजकल ये सब वाकई आम होता जा रहा है ..ढेरों बधाई कबूल करें भाई जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 4, 2013 at 12:00am

//रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,
आप पहले ही मनाने आ गए. 
...

दो घडी बैठो, ज़रा बातें करो,
ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.
...

जेब अपनी जब कभी भारी हुई,      
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.// बहुत बढ़िया अशआर हुये हैं बधाई आपको

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 3, 2013 at 11:44pm

जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,
मौत को जो घर दिखाने आ गए.

वाह बहुत खूब !!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 3:56pm

नूर--=-=-=नूर-------------- नूर---------------i  जी

क्या अदा क्या जलवे तेरे नूर i

ग़ज़ल नहीं ये है जन्नत की हूर ii

Comment by विजय मिश्र on December 3, 2013 at 11:46am
बहुत बढिया उतरा है , अनेक बधाई निलेशजी .
"राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,
याद कुछ चेहरे पुराने आ गये." -- यहाँ आपने एक जिन्दे जज्बात को संजीदगी से जज्ब किया है , मुझे बहुत प्यारी लगी .
Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 3, 2013 at 8:51am

इस ही का मसअला  यूँ हल किया है ...
रूठने का लुत्फ़ तो आया नहीं 
आप पहले ही मनाने आ गए ...
ये कैसा रहेगा ???

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
4 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service