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तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं

वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं

दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं

 

चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है  

विरह की आग में जलने के बाद आते हैं

 

न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों  

तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं

 

हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद

हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं

 

तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से

तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं ..............दीप...............

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on November 22, 2013 at 11:48pm

वाह आदरणीय भाई संदीप जी  वाह बहुत  सुन्दर प्रस्तुति । …हर्दिक बधाई आपको। । सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:31pm

बहुत शानदार प्रयास है संदीप जी। बधाई स्वीकारें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 22, 2013 at 11:28pm

वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं

दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं..........वाह! कटु सच लिए हुये मतले से शुरुआ

हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद

हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं...........कमाल का शेर

लाजवाब गजल पर, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय संदीप जी

Comment by Alka Gupta on November 22, 2013 at 11:00pm

वाह्ह्ह्हह्ह्ह्ह बहुत खूब ........हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 22, 2013 at 10:54pm

आदरणीय संदीप जी बेहतरीन ग़ज़ल है दिली दाद कुबूल करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 22, 2013 at 9:19pm

भाव पक्ष सबल है i

शिल्प के बारे में गुनीजन जाने i

Comment by नादिर ख़ान on November 22, 2013 at 7:43pm

वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं

दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं... अदरणीय संदीप जी उम्दा गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें ।

चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है  

विरह की आग में जलने के बाद आते हैं... इस शेर को थोड़ा चेक कर लें ।

आदर्णीय सौरभ जी ने हमें एक बार  तकबुले रदीफ़ दोष के बारे में बताया था।

(अगर मै गलत हूँ तो माफ कीजिएगा क्योंकि हमारा ज्ञान थोड़ा कच्चा है और अगर सही हूँ  तो आदर्णीय सौरभ जी को धन्यवाद दे दीजिएगा)

तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से (इस पंक्ति में शायद कुछ टाइपिंग  मिस्टेक है ।)

Comment by वेदिका on November 22, 2013 at 6:11pm

तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से

तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं ......उम्दा भाव 

उम्दा गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आ० संदीप भाई जी!

Comment by Meena Pathak on November 22, 2013 at 5:51pm

बेहतरीन गज़ल !! ढेरों बधाई क़ुबूल करें आदरणीय 

Comment by annapurna bajpai on November 22, 2013 at 5:05pm

आ0 संदीप जी बढ़िया गजल हुई है बधाई आपको । 

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