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श्राप

तुमने ठीक कहा था 
तुम्हारे बिना देख नही पाऊंगा मैं 
कोई भी रंग 
पत्तियों का रंग 
फूलों का रंग 
बच्चों की मुस्कान का रंग 
अज़ान का रंग 
मज़ार से उठते लोभान का रंग 
सुबह का रंग....शाम का रंग 
मुझे सारे रंग धुंधले दीखते हैं 
कुहरा नुमा...धुंआ-धुंआ...
और कभी मटमैला सा कुछ....

ये तुमने कैसा श्राप दिया है 
तुम ही मुझे श्राप-मुक्त कर सकते हो..
कुछ करो...
वरना पागल हो जाऊंगा मैं.....

(मौलिक अप्रकाशित)

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Comment by Abhinav Arun on September 24, 2013 at 9:27pm

...कुछ शब्दों का सफ़र और तय कर अंत करते तो अच्छा था अनवर साहिब वैसे रचना रोचक है ध्यान खींचती है ,,साधुवाद

!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 24, 2013 at 8:39pm

आ० अनवर सुहैल जी 

रचना में थोड़ा सा सपाटपन आ गया है..

अन्त में तो काव्यात्मकता बिल्कुल ही नहीं है.. कथ्य में अच्छी संभावनाएं है सिर्फ सम्प्रेषण पर थोड़ा सा काम करना होगा 

शुभकामनाएँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 20, 2013 at 6:04pm

आदरणीय अनवर साहब,

इस बार अस्पष्टता बन गयी है संप्रेषण में. बिम्ब का सार्थक स्वरूप निखर न पाने के कारण मेरा पाठक उलझा हुआ रहा.

रचना का प्रारम्भ और अंत एक दूसरे से अलग लगे.

बहरहाल, आपकी प्रस्तुति को मेरी सादर शुभकामनाएँ

Comment by राज़ नवादवी on September 20, 2013 at 5:09pm

अच्छा प्रयास है,  बधाई हो. शिल्प को और संवारा जा सकता है, अंत को भी थोड़ा कसा जा सकता है. 

Comment by रविकर on September 20, 2013 at 2:57pm

बहुत बढ़िया आदरणीय-
शुभकामनायें-

Comment by Parveen Malik on September 20, 2013 at 2:46pm
आदरणीय बहुत बढिया दिल की व्यथा और तड़प व्यक्त करती रचना ... सादर बधाई !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 1:45pm

आदरणीय अनवर भाई , आपकी हर रचना कुछ क्षणों के लिये स्तब्ध कर देती है !! क्या कहूँ !! बहुत बहुत शुक्रिया ऐसी रचना पढ़्वाने के लिये !! और बधाई इस रचना के लिये !!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 20, 2013 at 1:13pm

एक लाइन में पूरी पीड़ा व्यक्त कर गए , बधाई अनवर भाई ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 19, 2013 at 10:15pm

आदरणीय बहुत ही मार्मिक रचना पंक्ति दर पंक्ति अथाह प्रेम को बयां कर रही है बहुत बहुत बधाई स्वीकारें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2013 at 9:56pm

वेदना और संवेदना का बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हुई है, कविता बरबस आकर्षित करती है, सच ही तो कहा है, गर तू नहीं तो कुछ भी नहीं है । बहुत बहुत बधाई आदरणीय सुहैल साहब । 

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