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ऐसा नही है 
कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा 
ऐसा नही है 
कि वहां सरसराते हैं सर्प 
ऐसा नही है 
कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं 
ऐसा नही है 
कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े 
ऐसा भी नही है 
कि मौत के खौफ का बसेरा है 

फिर क्यों 
वहाँ जाने से डरते हैं हम 
फिर क्यों 
वहाँ की बातें भी हम नहीं करना चाहते 
फिर क्यों 
अपने लोगों को
बचाने की जुगत लागाते हैं हम 
फिर क्यों 
उस आतंक को घूँट-घूँट पीते हैं हम 
फिर क्यों 
फिर क्यों.....

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 340

Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on September 23, 2013 at 5:45pm

बेहद सशक्त रचना आदरणीय अनवर जी बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2013 at 4:03pm

फिर क्यों ? प्रश्न करती जवाब मांगती रचना (जिसके जवाब शायद गर्भ में छिपे है) के लिए हार्दिक बधाई श्री अनवर भाई  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 22, 2013 at 1:38pm

बहुत बढ़िया व् सशक्त रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर साहब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2013 at 8:17pm

आदरणीय अनवर भाई , सुन्दर , सशक्त रचना के लिये बधाई !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 21, 2013 at 8:11pm

फिर क्यों 
अपने लोगों को
बचाने की जुगत लागाते हैं हम 
फिर क्यों 
उस आतंक को घूँट-घूँट पीते हैं हम 
फिर क्यों 

आदरणीय अनवर जी ..न जाने क्यों ....आतंक बढ़ता ही जाता है और हम कमजोर ,,बड़ा प्रश्न है ...सोचना है बदलना है
सुन्दर रचना ....बधाई


भ्रमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 21, 2013 at 4:48pm

शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by Abhinav Arun on September 21, 2013 at 7:30am

सुन्दर सशक्त रचना हार्दिक शुभकामनायें !!

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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"सादर"
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