For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जलते रहे चिराग हवाओं से जूझकर

जलते रहे चिराग हवाओं से जूझकर

जिन्दा रहे थे हम भी गम में यूं डूबकर

चलते रहे थे हम भी लिए दिल में आस ही

वरना ठहर से जाते कभी हम भी टूटकर

बहने लगे थे हम भी लहरों के साथ ही

अब करते भी भला क्या कश्ती से छूटकर

वो हमसफ़र थे अपने मगर फिर भी मौन थे

कटती नहीं हयात मेरे यारों रूठकर

ले जायेगा मुझे भी इक दिन वो दूर यूं

अपनों के नाम होंगे नहीं लव पे भूलकर

जब से हुई हवा ये हवादिश की ही तरह

पीने लगे हैं छांछ सदा हम भी फूंककर

पीते रहे थे आशु जमाने का हम जहर

अपनी पे आये हम तो बोले थे फूटकर

मौलिक व अप्रकाशित 

 

डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१

Views: 749

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2013 at 12:01am

द्विपदी ठीक है लेकिन इसे किसी विधान के निकट होना होगा, आदरणीय. अन्यथा विधा-दोष की भागी होगी.

Comment by shubhra sharma on August 12, 2013 at 10:35pm

आदरणीय आशुतोष जी , अच्छी गजल के लिए हार्दिक शुभकामना 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2013 at 10:24pm

आदरनीय जितेन्द्रजी , नीरज जी , राज सर , गिरिराज जी , वसुंधरा जी ,अन्नपूर्नाजी , शिज्जू जी, केतन जी , श्याम जी और अरुण  जी ..आपके उत्साह वर्धक शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद, वर्तनी की गलती अक्सर हो जाती है आदरनीय राज जी के इस मशविरे पर अमल करने का पूरा प्रयास करूंगा , अरुण जी बहर के बिषय में जानकारी नहीं है मैं ल ला के फार्म में लिख दिया करूंगा ..आप सभी से निवेदन हैं इसी तरह अपना स्नेह बनाए रखे ..आप सभी को सादर नमन के साथ 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 5:44pm

बहने लगे थे हम भी लहरों के साथ ही

अब करते भी भला क्या कश्ती से छूटकर.........वाह! बहुत खूब, शानदार शेर

बधाई आदरणीय आशुतोष जी

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 10:55am
अब आशुतोष जी ग़ज़ल लिखेंगे
तो लाजवाब होना तो वाजिब है
बहुत ही सुन्दर ।
Comment by राज़ नवादवी on August 10, 2013 at 12:34pm

कृपया ;लव ', ' हवादिश '. 'आशु' जैसे शब्दों की वर्तनी शुद्ध कर लें. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2013 at 11:53am
सुन्दर गज़ल भाई आशुतोष !!
Comment by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 4:22pm

चलते का नाम जिंदगी है...सुन्दर ...बहुत सुन्दर...बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on August 8, 2013 at 11:15pm

आदरणीय आशुतोष जी सुंदर भावों के के साथ रची गई गजल हेतु बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 8, 2013 at 10:30pm

डॉ आशुतोष जी ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service