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हास्य - व्यंग
शादी बनाम बहुमत


एक दिन श्रीमती जी का आसन डोला ,
मेरा छोटा सुपुत्र आकर मुझसे बोला ,
मम्मी बुला रहीं हैं ,

चल रहे हो , वरना खुद आ रहीं हैं ,
कह कर वो भागा ,
लगा तोप का गोला दागा ,

मैं गया , बोला प्राणप्रिय जल्दी फर्माओ ,
क्या है  दुखखबरी , तुरंत सुनाओ ,
बोली , मैं करती हूँ एक ऐलान ,
तुम्हारी, तीन और शादी का फरमान ,

मैं चिल्लाया , किसी तरह ज़िंदगी काट रहा हूँ ,
रबड़ी तुम खाती हो , दोना मैं चाट रहा हूँ ,
तीन और आ जाएँगी , तो कैसे जी पाउँगा  ,
तुम सब ऐश करोगी , मैं ज़िंदा लाश रह जाउँगा ,

मैने कहा , हे देवी , दया करो ,
इस मुश्किल से मुझको जल्द तरो ,
पिछले दिनों , तुम्हारे लिए  साड़ियाँ लाया था ,
साथ तुम्हारे भाई का सूट भी सिलवाया था ,

देखो सब्ज़ी में नमक ज़्यादा होता रहता है ,
बर्तन धोते - धोते , कभी हाथ सोता रहता है ,


आदमी तो ग़लतियों का पुतला है ,
फिर ये किस ग़लती की इत्तला है ,

इस बार आख़िर क्या ख़ाता हो गयी ,
जिसकी , इतनी बड़ी सज़ा हो गयी ,
प्रिय , बदले में जो भी कहोगी , करूँगा ,
अब से पड़ोसन को भी ना देखूँगा ,

वो मुस्कराई , लगा किसी ने बिजली गिराई ,
अज़ी , क्या ठिठोली कर रहे हो ?
यह आज का समाचार पत्र देख रहे हो ,
इसमे एक खबर आयी है ,
उनके भारी बहुमत से जीतने की तरकीब बताई है ,

वहाँ एक मर्द है , और चार - चार बीबी ,
एक दिन और बता रहा था टीवी ,
देखो नाथ , बहुमत का ज़माना है ,
यही बात तो मुझे तुम्हें समझाना है ,
बाद में , जो भी कहोगे वही करूँगी ,
लेकिन पहले मैं बेनज़ीर बनूँगी ,

अश्क

एक आम महिला ने ,सुश्री बेनज़ीर भुट्टो के जीतने के प्रसंग को सन्दर्भ मे लिया है ,

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 4:13pm

वहाँ एक मर्द है , और चार - चार बीबी ,
एक दिन और बता रहा था टीवी ,
देखो नाथ , बहुमत का ज़माना है ,
यही बात तो मुझे तुम्हें समझाना है ,
बाद में , जो भी कहोगे वही करूँगी ,
लेकिन पहले मैं बेनज़ीर बनूँगी ,

आदरणीय अश्क जी 

सादर बधाई.

अश्क  और इश्क में फर्क नहीं ज्यादा 

कहने को तो हैं  अलग अलग 

मगर साथ रहते हैं

 कोई ठीक माने या गलती उसकी 

इश्क हो जाये तो अश्क बहते हैं

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 7:44am

हा हा हा आदरणीय अश्क साहब कमाल की रचना पंक्ति पंक्ति में हास्य है. मजा आ गया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by vijay nikore on April 25, 2013 at 11:39am

सुन्दर हास्य-व्यंग !

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 11:04pm

आदरणीय अश्क जी ...व्यंग्य का पुट लिए हुए हंसने को मजबूर करती अच्छी रचना ,,,,जय श्री राधे 

मैं चिल्लाया , किसी तरह ज़िंदगी काट रहा हूँ ,
रबड़ी तुम खाती हो , दोना मैं चाट रहा हूँ ,
भ्रमर ५ 
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 8:58pm

आ0 कत्याल जी,    हा हा हा हहह सुन्दर हास्य-व्यंग।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by manoj shukla on April 24, 2013 at 5:44pm
बहुत सुन्दर व्यंग...बधाई स्वीकार करें आदर्णीय
Comment by Usha Taneja on April 24, 2013 at 5:36pm

आदरणीय कात्याल जी, बहुत बढ़िया व्यंग्य! मुबारक हो! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 24, 2013 at 2:58pm

हा हा हा हा हा, आदरणीय कत्याल जी, प्रसंग को बहुत ही बढ़िया से हास्य रस मे पिरोया है, बहुत खूब, बधाई इस हास्य रचना हेतु |

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