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सामाजिक न्याय दिवस पर दोहे

सामाजिक न्याय दिवस (२० फरवरी) पर

जाति  धर्म  के  फेर  से, मुक्त  नहीं  जब देश
तब सामाजिक न्याय का, मिले कहाँ परिवेश।।
*
कत्ल अपहरण  रेप की, बलशाली को छूट
है सामाजिक न्याय की, यहाँ आज भी लूट।।
*
चन्द यहाँ खुशहाल है, शेष सभी गमगीन
सामाजिक समता नहीं, देश भले स्वाधीन।।
*
धनवानों को न्याय हित, घर आता आयोग
न्याय न्याय चिल्ला मरे, लेकिन निर्धन लोग।।
*
सज्जन को करना क्षमा, एक बार है न्याय
दुर्जन को बस दण्ड ही, केवल शेष उपाय।।
*
है सामाजिक न्याय का, नारा बहुत अपंग
जब तब देखो हाकते, इस को लोग दबंग।।
*
बेबस निर्धन जेल में, बिन सुनवाई बन्द
अपराधों के बाद भी, बलशाली निर्द्वन्द।।
*
अपराधी  लड़  कैद से, जाता  जीत  चुनाव
पीड़ित सबको गिर करे, राजनीति का भाव।।
*
व्यापारी तो  कर्ज  ले, भागें  आज विदेश
राहत नहीं किसान को, कैसा यह परिवेश।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2022 at 9:32am

आ. भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2022 at 9:31am

आ. भाई अमीरुद्दी जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति, प्रशंसा और त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2022 at 9:27pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Aazi Tamaam on February 23, 2022 at 3:22pm

वाह आ धामी सर बेहद खूबसूरत दोहे हुए वाह वाह

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 22, 2022 at 1:11pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी दोहावली हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

"बेबस निर्धन जेल में, बिन सुनवाई बन्द

 अपराधों के बाद भी, बलशाली निर्द्वन्द"   

मेरे जानकारी में इस दोहे का अंतिम शब्द सही अक्षरी "निर्द्वन्द्व" है, देखियेेगा।  सादर। 

Comment by Chetan Prakash on February 22, 2022 at 7:24am

खुब सूरत दोहे लिखे, आपने भाई लक्ष्मण सिंह धामी मुसाफिर साहब, बधाई  ! 

" सज्जन को करना क्षमा, एक बार है न्याय ! / दुर्जन को बस दंड ही, केवल शेष उपाय " दोहा मेरी विशेष पसंद रहेगा! सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2022 at 9:37pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति, स्नेह एवं टंकणत्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on February 21, 2022 at 8:44pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'चन्द यहाँ खुशहाल है, शेष सभी गमगीन'

इस पंक्ति में 'है' को "हैं" करना उचित होगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2022 at 8:19pm

आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

इंगित पंक्ति को यूँ पढ़ें - " गिर सबको पीड़ित करे"

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 20, 2022 at 6:46pm

आदरणीय लक्ष्मणजी 

सुन्दर दोहावली हार्दिक बधाई |

पीड़ित सबको गिर करे ....... अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया 

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