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चाँद - चाँदनी पर दोहावली ......

चाँद -चाँदनी पर दोहावली ......

देख रहा है चाँदनी , आसमान से चाँद ।
मिलने आया झील में , नीले नभ को फाँद।1।

देख चाँद को चाँदनी ,करे झील पर रक्स ।
सिमट गया है चाँद का, उजियारी में अक्स ।2।

चाँद फलक का ख़्वाब तो, धवल चाँदनी नूर ।
वीचि -वीचि क्रीड़ा करे, सोम प्रीत में चूर ।3।

विभा चाँद की  देखती, तारों वाली रात ।
नील झील से कौमुदी, करे चाँद से बात ।4।

छुप-छुप देखे चंद्रिका, अपने विधु का रूप ।
बिम्ब चाँद का चाँदनी, जल में मीठी धूप ।5।

सुशील सरना / 3-9-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 10, 2021 at 10:41am

आदरणीय सरना जी अच्छे दोहे हुए...हार्दिक बधाई

Comment by Samar kabeer on September 6, 2021 at 12:14pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, दोहों का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'देख चाँद को चाँदनी ,करे झील पर रक्स ।
सिमट गया है चाँद का, उजियारी में अक्स'

इस दोहे में 'रक़्स' और 'अक्स' की तुकांतता दुरुस्त नहीं है, क्योंकि 'रक़्स' शब्द में 'क' के नीचे नुक़्ता लगता है ,देखियेगा ।

Comment by Chetan Prakash on September 5, 2021 at 12:03pm

आदाब, सुशील सरना जी, दोहावली आपका अच्छा प्रयास कहा जाएगा! किन्तु कुछ शब्दों का प्रयोग सही नहीं जान प़ड़ा, यथा 'रक्स' जिसे रश्क़ होना चाहिए! साथ ही 'वीचि वीचि' जैसा शब्द-यु्म मैंने पहली बार प्रयुक्त हुआ देखा, आशय आप ही, माननीय बेहतर समझते होंगे! संदर्भ में ' तड़प- तड़प' श्रेयस्कर जान पड़ता है, देखिएगा! 

  वीचि'

Comment by Sushil Sarna on September 4, 2021 at 8:40pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2021 at 2:52pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर विषयगत दोहे हुए है।  हार्दिक बधाई।

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