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पूरा किया है कौन वचन आपने जनाब -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२


चाहे कमाया खूब  हो धन आपने जनाब
लेेेकिन ज़मीर करके दमन आपने जनाब।१।
*
तारीफ  पायी  नित्य  हो  दरवार  में भले
मुजरा बना दिया है सुखन आपने जनाब।२।
*
ये  सिर्फ  सैरगाह  रहा  हम  को  है पता
माना नहीं वतन को वतन आपने जनाब।३।
*
उँगली उठायी नित्य  ही  औरों के काम पर
देखा न किन्त खुद का पतन आपने जनाब।४।
*
देखो लगे हैं  लोग  ये  घर  अपना फूँकने
ऐसी लगायी मन में अगन आपने जनाब।५।
*
अपने हितों को खोल के जनता की ओर से
रक्खे  हमेशा  बन्द  नयन  आप ने  जनाब।६।
*
कैैैसे करेंं  ये  आस  कि  लाओगे  सुख यहाँ
पूरा किया  है  कौन  वचन  आप  ने  जनाब।७।

(१२-३-२१)


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2021 at 8:55pm

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 19, 2021 at 7:36pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।  सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2021 at 11:50am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 19, 2021 at 11:20am

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।

ये  सिर्फ  सैरगाह  रहा  हम  को  है पता
माना नहीं वतन को वतन आपने जनाब।३।

Comment by Samar kabeer on March 18, 2021 at 5:59pm

अब ठीक हैं ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2021 at 5:43pm

आ. भाई समर जी ,पुनः उपस्थिति के लिए आभार । शेष मिसरों पेस्ट करते समय शायद हो नहीं पाये। देखियेगा ।
//उँगली उठायी नित्य ही औरों के काम पर
//कैसे करें ये आस कि लाओगे सुख यहाँ

Comment by Samar kabeer on March 18, 2021 at 11:44am

'लेकिन जमीर करके दमन आपने जनाब'

ये मिसरा अब ठीक है, और बाक़ी मिसरे?

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2021 at 7:59am

आ. भाई समर जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार । इंगित मिसरों में बदलाव किया है । देखियेगा ।
//लेकिन जमीर करके दमन आपने जनाब

Comment by Samar kabeer on March 17, 2021 at 7:52pm

जनाब लक्ष्मण धामी `मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I

`रक्खा ज़मीर किन्तु रेहन आपने जनाब` इस मिसरे में क़ाफ़िया सहीह नहीं है सहीह शब्द है `रह्र` 21 , देखियेगा I  
`अंगुल उठायी नित्य ही औरों के काम पर`--इस मिसरे में `अंगुल`को ``ऊँगली`` करना उचित होगा I  
`क्यों अब रखें उम्मीद कि लाओगे सुख यहाँ`--इस मिसरे में `उम्मीद` को ``उमीद`` कर लें I 

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