सुबह-सुबह
सूरज को देखा
बहुत ही सुंदर
फूलों को देखा
बहुत ही प्यारे
रंग बिरंगी तितलियों को देखा
हृदय हुआ प्रफुल्लित
प्यारे प्यारे बच्चों को देखा
मन हुआ आनंदित
दोपहर में देखा
बादलों संग सूरज की लुका छिपी
आहा ! कितना सुंदर...
शाम को देखा
आकाश का सौंदर्य
पश्चिम दिशा की सुनहरी लालिमा
चिड़ियों का कौतुहल..
सब कुछ कितना सुंदर
कविता सृजन हेतु
सभी तत्व थे मेरे पास ।
बैठ गया लिखने
कविता..
तभी दूसरे कमरे से
समाचार की छन-छन आवाज आने लगी -
ड्रग का नशा
सत्ता का नशा
गुंडागर्दी
बलात्कार
कोरोना
समाज बाढ़ से तबाह
आह !
कविता छोड़, सोचा
चलो चाँद देखते हैं
छत पर गया
चाँद नहीं था
रात अमावस की थी ।
लौट आया कमरे में
ओह!
यह क्या !
कविता ने
आत्महत्या कर ली थी
मैं निश्शब्द था !
और......
पंखा निस्तब्ध !!
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
ग़ज़ब !
भाई गनेस जी !! ..
चामत्कारिक बिंबों से आपने, सच कहूँ, तो अनायास प्रतीत होते, अलिप्त-से दीखते दैनिक प्रवाह में प्रचण्ड प्रवाह पैदा कर दिया है. यथार्थबोध का ऐसा सान्द्र निवेदन कम ही समक्ष आता है.
यदि कहूँ कि यह कविता मुझे यहाँ पटल पर खींच लायी, तो अन्यथा न होगा. बिंब, शिल्प, कथ्य, प्रवाह तथा संदर्भ सबकुछ श्रेष्ठ है.
मैं चकित हूँ. और, आपकी रचनाधर्मिता ही नहीं आपकी वैचारिकता पर भी मुग्ध हूँ.
बधाई.. बधाई.. बधाई..
शुभातिशुभ
जनाब गणेश जी
'बहुत ही प्यारे'
इस पंक्ति में 'प्यारे' की जगह "प्यारी" शब्द उचित होगा ।
'दोपहर में देखास
इस पंक्ति में 'देखा' की जगह "देखी" शब्द उचित होगा ।
आ. भाई गणेष जी, सादर अभिवादन ।सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है । हार्दिक बधाई ।
सराहनायुक्त प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार आदरणीय हर्ष महाजन जी ।
आदरणीय गणेश जी बागी जी कविता का बहुत ही सुंदर सृजन हुआ । दाद कबूल कीजियेगा ।
सादर ।
त्वरित प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार मोहतरम अमीरुद्दीन साहब ।
टंकण त्रुटि ठीक कर लिया है।
आदरणीय जनाब गणेशजी बागी जी आदाब, बहुत ही ख़ूबसूरत कविता का सृजन हुआ है बधाई स्वीकार करें।
महोदय शायद टंकण त्रुटि के कारण प्रफुल्लित शब्द ग़लत टाईप हो गया है। सादर।
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