For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे..( ग़ज़ल : सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

क्या जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे
था बेगुनाह फिर भी सज़ा दे गया मुझे

कैसे यक़ीन कीजिए ग़ैरों की बात का
समझा था जिसको अपना दगा दे गया मुझे

लम्बी हो उम्र मेरी दुआ मांँगता रहा
मरने की मुफ़्त में जो दवा दे गया मुझे

उसके इशारों को मैं समझ ही नहीं सका
गूंँगा था आदमी जो सदा दे गया मुझे

ग़ज़लें पुरानी ले गया आया था ख़्वाब में
इनके इवज में घाव नया दे गया मुझे

भीगा था जिस्म मेरा दिसम्बर की रात में

तुहफ़े में धूप की वो रिदा दे गया मुझे

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

Views: 942

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 8, 2020 at 11:12am

//मतले की शुरुआत न केबजाय ना से बेहतर होती//

उर्दू शाइरी में 'न' को 1 पर ही लिया जाता है ।

Comment by सालिक गणवीर on September 8, 2020 at 10:18am

भाई चेतन प्रकाश जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम।

Comment by Chetan Prakash on September 8, 2020 at 8:45am

   बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, जनाब, सालिक गणवीर साहब! मतले की शुरुआत न केबजाय ना से बेहतर होती !

Comment by सालिक गणवीर on September 7, 2020 at 11:15pm

आदरणीया डिंपल शर्मा जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on September 7, 2020 at 11:14pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.आखिरी के दोनो अश'आर हटा दूंगा जैसा कि उस्ताद जी की भी इस्लाह हैै लेकिन अगर आप मदद करेंगे तो  छटा  शैर भरती का शैर कहलाने से बच जाएगा आदरणीय. इस्लाह अपेक्षित है.

Comment by Dimple Sharma on September 7, 2020 at 4:44pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय ।

Comment by Samar kabeer on September 7, 2020 at 4:39pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'न जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे'

ये मिसरा बह्र में नहीं है, 'न' की जगह "क्या" कर लें,बह्र में हो जाएगा ।

'जो अपना आदमी था दगा दे गया

मुझे'

इस मिसरे में 'आदमी' शब्द उचित नहीं,मिसरा यूँ कह सकते हैं:-

'समझा था जिसको अपना दग़ा दे गया मुझे'

 

'मैं उसके इशारात समझ ही नहीं सका'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर लें:-

'उसके इशारों को मैं समझ ही नहीं सका'

'एवज में फिर से घाव नये दे गया मुझे'

इस मिसरे में सहीह शब्द "इवज़" 12 है, और क़ाफ़िया भी ग़लत है,यूँ कह सकते हैं:-

'उनके इवज़ में घाव नया दे गया मुझे'

'अंदर सुलग रहा था जो बरसों से आज तक
आया तो था बुझाने हवा दे गया मुझे

ये शैर भर्ती का है हटा दें ।

इसके बाद के अशआर में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हो सका, हटा दें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 7, 2020 at 2:04pm

आदरणीय जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, पहले से पाँचवे शे'र तक अच्छे अह्सासात और जज़्बात निगारी के साथ शे'र कहे हैं आपने, मुबारकबाद पेश करता हूँ, लेकिन छटे शे'र के मिसरों में क्रमशः "क्या" और "कौन" की कमी खटक रही है, सातवें शे'र का कथ्य स्पष्ट नहीं है और आख़िरी शे'र का शिल्प औचित्यविहीन है। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service