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ग़ज़ल ( ये नया द्रोहकाल है बाबा...)

(2122 1212 22/112)

शह्र में फ़िर बवाल है बाबा
ये नया द्रोहकाल है बाबा

एक तालाब अब नहीं दिखता
क्या यही नैनीताल है बाबा?

क्या इसे ही उरूज कहते हैं?
अस्ल में ये ज़वाल है बाबा

भूख हर रोज़ पूछ लेती है
रोटियों का सवाल है बाबा

आंख इतना बरस चुकी अब तो
आंसुओं का अकाल है बाबा

मैं अकेला ही लड़ पड़ा सबसे
देखकर वो निढाल है बाबा

क़ब्र के वास्ते जगह न रही

फावड़ा है कुदाल है बाबा

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सालिक गणवीर on May 31, 2020 at 7:32pm

आदरणीय अमीरुद्दीन ख़ान साहब.

आदाब.

ग़ज़ल पर उपस्थिती तथा हौसला अफजाई के लिए आपका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 31, 2020 at 6:08pm

आदरणीय जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब । दमदार अश'आ़र से सुसज्जित शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें। सादर। 

Comment by सालिक गणवीर on May 31, 2020 at 2:45pm
आदरणीय तेज वीर सिंह जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.
Comment by सालिक गणवीर on May 31, 2020 at 2:43pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.
आपकी इस्लाह पर अमल करता हूँ, आदरणीय.
Comment by TEJ VEER SINGH on May 31, 2020 at 11:47am

हार्दिक बधाई आदरणीय सालिक गणवीर जी। बेहतरीन गज़ल।

आंख इतना बरस चुकी है कि
आंसुओं का अकाल है बाबा

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2020 at 11:11am

आ. भाई गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

"आंख इतना बरस चुकी अब तो" मिसरे को ऐसे भी किया जा सकता है  क्या ? सादर..

Comment by सालिक गणवीर on May 31, 2020 at 11:03am

आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.

ख़याल और ख़्याल दो भिन्न शब्द हैंं,आदरणीय, पहले का अर्थ कल्पना और दूजे का देखभाल होता है. रही बात मात्राओं के उठा ने या गिराने की,तो ऐसा करने से बचना चाहिए. गिरा सकते हैं तो उठाया भी जा सकता है.

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 31, 2020 at 9:56am

आदरणीय सालिक गणवीर जी

नमस्कार। खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई

मेरे विचार से

ये गरीबों का ख्याल है बाबा

में ख्याल की जगह "खयाल " शब्द का प्रयोग होता है

आँख इतनी बरस चुकी है कि

यहां " कि"  का वज़्न 2 लिया गया है शायरी में वज्न गिराया जा सकता है लेकिन बढ़ाया नहीं जा सकता।

सादर

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