For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 / 2121 / 1221 / 212

उस बेवफ़ा से दिल का लगाना बहुत हुआ
मजबूर दिल से हो ये बहाना बहुत हुआ [1]

छोड़ो ये ज़ख़्म-ए-दिल का फ़साना बहुत हुआ
ये आशिक़ी का राग पुराना बहुत हुआ [2]

चलते ही चलते दूर निकल आये इस क़दर
ख़ुद से मिले हुए भी ज़माना बहुत हुआ [3]

ख़ुद से भी कोई रोज़ मुलाक़ात कीजिये
ये दूसरों से मिलना मिलाना बहुत हुआ [4]

तस्कीन दे न पाएँगे काग़ज़ पे कुछ निशाँ
लिख लिख के उसका नाम मिटाना बहुत हुआ [5]

अब इक नया बनाइए ख़ुशरंग गुलसिताँ
ग़म के ही ज़र्द फूल खिलाना बहुत हुआ [6]

आहट सुनाई देती है अब इंक़लाब की
ज़ालिम के आगे सर को झुकाना बहुत हुआ [7]

करना पड़ेगा सामना आख़िर को एक दिन
यूँ ज़िन्दगी से आँख चुराना बहुत हुआ [8]

सोने की चिड़िया फिर से बनाएँगे हिन्द को
ये ग़ुर्बतों का रोना रुलाना बहुत हुआ [9]

करना है गर नशा तो महब्बत का कीजिये
साक़ी के जाम पीना पिलाना बहुत हुआ [10]

'शाहिद' ख़ुदा के वास्ते कुछ होश कीजिये
हर बात को धुएँ में उड़ाना बहुत हुआ [11]

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 3, 2020 at 8:56pm

आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम, सादर प्रणाम। आपकी हौसला-अफ़ज़ाई और इस्लाह के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ सर। जवाब देने में जो ताख़ीर हुई उसके लिए माज़रतख़्वाह हूँ।

//पहले मतले के दोनों मिसरों में रब्त पैदा नहीं हो सका, देखियेगा//
जी दोबारा ग़ौर करता हूँ जनाब।

//मैं इस मिसरे को यूँ कहता:-
'हम चलते चलते दूर निकल आये इस क़दर'//
जी बेहतर है।

//'ख़ुद से भी कोई रोज़ मुलाक़ात कीजिये'
इस मिसरे में 'कोई' की जगह "आप" शब्द उचित होगा,ग़ौर करें//
उस्ताद जी, यहाँ 'कोई' को 'किसी' के अर्थ से इस्तेमाल किया था। अगर सहीह नहीं है तो दोबारा ग़ौर करता हूँ।

//आहट सुनाई देती है अब इंक़लाब की
इस शैर का ऊला मिसरा और कसावट चाहता है, ग़ौर करें//
जी शे'र के ऊला को यूँ कहा जाए तो सहीह रहेगा?
221 / 2121 / 1221 / 212
आहट मैं सुन रहा हूँ नए इंक़लाब की
ज़ालिम के आगे सर को झुकाना बहुत हुआ [7]

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 3, 2020 at 8:39pm

आदरणीय अमीरुद्दीन ख़ान "अमीर" साहिब, आपकी हौसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। जवाब देने में जो ताख़ीर हुई उसके लिए माज़रतख़्वाह हूँ।

Comment by Samar kabeer on May 25, 2020 at 8:09pm

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।

पहले मतले के दोनों मिसरों में रब्त पैदा नहीं हो सका, देखियेगा ।

'चलते ही चलते दूर निकल आये इस क़दर'

मैं इस मिसरे को यूँ कहता:-

'हम चलते चलते दूर निकल आये इस क़दर'

'ख़ुद से भी कोई रोज़ मुलाक़ात कीजिये'

इस मिसरे में 'कोई' की जगह "आप" शब्द उचित होगा,ग़ौर करें ।

'आहट सुनाई देती है अब इंक़लाब की
ज़ालिम के आगे सर को झुकाना बहुत हुआ'

इस शैर का ऊला मिसरा और कसावट चाहता है, ग़ौर करें ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 25, 2020 at 7:32pm

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' साहिब, शानदार ग़ज़ल कहने के लिए मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on May 25, 2020 at 3:14pm

आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ!

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on May 25, 2020 at 3:11pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई, आदाब। प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार। जी भाई, हालात कुछ ऐसे बन गए थे कि शाइरी पे ध्यान लग नहीं रहा था। आशा है कि अब नियमित रूप से उपस्थित रहूँगा। आपका तह-ए-दिल से शुक्रिय:!

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 25, 2020 at 8:48am

यूँ जिंदगी से आँख चुराना बहुत हुआ,कमाल की गज़ल आदरणीय रवि भसीन साहब मंत्रमुग्ध हो गया पढ़कर ,दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिए

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 24, 2020 at 7:34pm

आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

मंच पर काफी दिनों बाद दिखाई दिये । कहीं ब्यस्त थे क्या ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
33 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
39 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सम्माननीय ऋचा जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल तकआने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः।"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"//मशाल शब्द के प्रयोग को लेकर आश्वस्त नहीं हूँ। इसे आपने 121 के वज्न में बांधा है। जहाँ तक मैं…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है गिरह ख़ूब हुई सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. भाई महेन्द्र जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की सलाह से यह और…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service