हो न कभी राग रति से, यही लिया व्रत ठान |
कर लूँ कुछ सत्कर्म सृजित , हो मेरा यश गान |
बेधा उर रति-बान ने, दीक्षा पे आघात |
छंदरूप मृदु गात लखि, व्रत है टूटा जात ||
अपलक भए नेत्र मोरे, देखि अनुप रूप को |
वक्ष गिरि, कटि गह्वर, रसद मधुर गात है |
मचलै ना माने हिय लोचन निहार हार |
कबरी पे आँचल फसाए चाली जात है |
कर्ण-कुण्डल कपोल छुए, अधर सोहे मूँगे सा |
नयना कमल हो मानो मुखड़ा प्रभात है |
पाँव से शीश लाइ, समांग निरखि-निरखि के |
हृदय जाय वारि-वारि, कइसा आघात है ||
मधु-रति रूप निहारि निहारि के, नाद करत उर अंतर इच्छ |
मन फूलि गए गिरि रूप भए, मिलिगयो जो मकरंद क भिक्ष |
मन होय न एकहुँ पल विचलित, ले जउ कोटिउ बार परीक्षा |
लावण्यमयी तन रूप लपेटि जो, ताखे धरे पहिले क ऊ दीक्षा ||
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. महर्षि जी सादर धन्यवाद..
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन जी आपके मार्गदर्शन युक्त टिप्पणी को सहर्ष, साभार स्वीकार करता हूँ.... इस रचना मे सिर्फ भावों को ही समेटने का प्रयास किया हूँ, जबकि व्याकरणीय नीयम पे भी समय देना था जिसे भविश्य में दृष्टिगत रखकर रचना करने का प्रयास करूँगा |...सादर...
सुन्दर छन्द रचना पर आपको बधाई आ.SHARAD SINGH "VINOD" जी |
प्रिय विनोद जी
दोहा-----'हो न कभी राग रति से' त्रुटिपूर्ण है . संगठन 3 +3 +2+3 +2 अपेक्षित है , इस लिहाज से 'हो न कभी रति राग से ' सही है .
'कर लूँ कुछ सत्कर्म सृजित' इसमें 14 मात्राये हैं . इसे --- 'कर लूँ कुछ सत्कर्म मैं 'किया जा सकता है .
कवित्त/घनाक्षरी ---यह तो पूर्णतः दोषपूर्ण है, आप इसे फिर से लिखें ------------ पहली पंक्ति में वर्ण सख्या 10,8 है 8,8 चाहिए , दूसरी पंक्ति , में 9,9 है, 8,7 चाहिए ------------ तीसरी पंक्ति 8,8 बिलकुल सही है चौथी पंक्ति में 7,8 है ,8,7 चाहिए , पांचवी पंक्ति में 10,8 वर्ण है 8,8 चाहिए ,छठी में 9,7 है 8,7 चाहिये , सातवी में 7,10 है 8,8 चाहिए . अंतिम पंक्ति 9,7 है 8,7 चा हिये .
सवैय्या ------ पहली पंक्ति के हिसाब से गण निम्न प्रकार है -
मधु-रति रूप निहारि निहारि के, नाद करत उर अंतर इच्छ
11 11 21 121 121 2 21 111 11 211 21
यानि कि -------------- नगण जगण जगण जगण तगण नगण सगण सगण लघु --------- इस विन्यास पर कौन सा सवैया बनता है कृपया बतायें तब इस पर बात करें , मजे की बात यह भी है कि आगे की तीन पंक्तियों में इस विन्यास को दुहराया भी नहीं गया
सवैय्ये की हर पंक्ति में सामान विन्यास होता है . आदरणीय यह श्रम इसलि ये किया गया है कि यहाँ हम सीखते भी हैं और सिखाते भी है . आपको कोई कठिनाई हो तो निसंकोच पूछिए और पहले एक छंद को भली प्रकार सिद्ध करने केबाद ही दुसरे छंद पर प्रयास करें वरना गड्ड -मड्ड हो जाएगा, सस्नेह .
आ. कृष्णा जी सादर धन्यवाद..
आदरणीय Samar kabeer जी आपके आत्मीय टिप्पणी के लिए तहेदिल से शुक्रिय...
बहुत सुन्दर छंद हुए है भाई शरद जी! हार्दिक बधाई!
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