For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

: भई विचलित व्रत, रति सत्ता से : 26/07/2005

हो न कभी राग रति से, यही लिया व्रत ठान |

कर लूँ कुछ सत्कर्म सृजित , हो मेरा यश गान |

बेधा उर रति-बान ने, दीक्षा पे आघात |

छंदरूप मृदु गात लखि, व्रत है टूटा जात ||

 

अपलक भए नेत्र मोरे, देखि अनुप रूप को |

वक्ष गिरि, कटि गह्वर, रसद मधुर गात है |

मचलै ना माने हिय लोचन निहार हार |

कबरी पे आँचल फसाए चाली जात है |

कर्ण-कुण्डल कपोल छुए, अधर सोहे मूँगे सा |

नयना कमल हो मानो मुखड़ा प्रभात है |

पाँव से शीश लाइ, समांग निरखि-निरखि के |

हृदय जाय वारि-वारि, कइसा आघात है ||

 

मधु-रति रूप निहारि निहारि के, नाद करत उर अंतर इच्छ  |

मन फूलि गए गिरि रूप भए, मिलिगयो जो मकरंद क भिक्ष |

मन होय न एकहुँ पल विचलित, ले जउ कोटिउ बार परीक्षा |

लावण्यमयी तन रूप लपेटि जो, ताखे धरे पहिले क ऊ दीक्षा ||

***********************************************************

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 643

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on June 5, 2015 at 8:14pm

आ. महर्षि जी सादर धन्यवाद..

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on June 5, 2015 at 8:13pm

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन जी आपके मार्गदर्शन युक्त टिप्पणी को सहर्ष, साभार स्वीकार करता हूँ.... इस रचना मे सिर्फ भावों को ही समेटने का प्रयास किया हूँ, जबकि व्याकरणीय नीयम पे भी समय देना था जिसे भविश्य में दृष्टिगत रखकर रचना करने का प्रयास करूँगा |...सादर...

Comment by maharshi tripathi on June 5, 2015 at 7:43pm

सुन्दर  छन्द रचना पर आपको बधाई आ.SHARAD SINGH "VINOD" जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2015 at 1:25pm

प्रिय विनोद जी

दोहा-----'हो न कभी राग रति से' त्रुटिपूर्ण है . संगठन  3 +3 +2+3 +2 अपेक्षित है , इस लिहाज से 'हो न कभी  रति राग से ' सही है .

           'कर लूँ कुछ सत्कर्म सृजित'  इसमें  14 मात्राये  हैं . इसे --- 'कर लूँ कुछ सत्कर्म मैं 'किया जा सकता है .

कवित्त/घनाक्षरी ---यह तो  पूर्णतः  दोषपूर्ण है, आप इसे फिर से लिखें ------------ पहली पंक्ति में वर्ण सख्या  10,8 है 8,8 चाहिए , दूसरी पंक्ति ,  में 9,9 है, 8,7 चाहिए  ------------ तीसरी पंक्ति 8,8 बिलकुल सही है चौथी पंक्ति में  7,8 है ,8,7 चाहिए , पांचवी पंक्ति में 10,8 वर्ण है 8,8 चाहिए ,छठी में 9,7 है 8,7 चाहिये , सातवी में 7,10 है 8,8 चाहिए . अंतिम पंक्ति 9,7 है 8,7 चा हिये .

सवैय्या ------ पहली पंक्ति के हिसाब से  गण निम्न प्रकार है -

                                          मधु-रति रूप निहारि निहारि के, नाद करत उर अंतर इच्छ 

                                          11  11   21  121    121    2   21  111 11   211  21

यानि  कि --------------            नगण  जगण  जगण   जगण  तगण   नगण  सगण सगण लघु --------- इस विन्यास पर कौन सा सवैया बनता है कृपया बतायें तब इस पर बात करें , मजे की बात यह भी है कि आगे की तीन पंक्तियों में इस विन्यास को दुहराया भी नहीं गया

सवैय्ये  की हर पंक्ति में सामान विन्यास होता है .  आदरणीय यह श्रम इसलि ये किया गया है कि  यहाँ हम सीखते भी हैं और सिखाते भी  है  . आपको कोई कठिनाई हो तो निसंकोच  पूछिए और पहले एक छंद को भली प्रकार सिद्ध करने केबाद ही दुसरे छंद पर प्रयास करें वरना गड्ड -मड्ड  हो जाएगा, सस्नेह .

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on June 5, 2015 at 12:51pm

आ. कृष्णा जी सादर धन्यवाद..

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on June 5, 2015 at 12:48pm

आदरणीय Samar kabeer जी आपके आत्मीय टिप्पणी के लिए तहेदिल से शुक्रिय...

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 5, 2015 at 12:25pm

बहुत सुन्दर छंद हुए है भाई शरद जी! हार्दिक बधाई!

Comment by Samar kabeer on June 4, 2015 at 11:18pm
जनाब शरद सिंह "विनोद" जी,आदाब,आपके छंद पसंद आए ,अच्छा लिखते हैं आप ,मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service