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ग़ज़ल नूर की- सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे

.
सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे
उनकी आँखों में जो मेरे वास्ते पानी रहे.
.
मैं किसी को जोड़ने में घट भी जाऊँ ग़म न हो
ज़िन्दगानी के गणित में इतनी नादानी रहे.
.
क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे.
.
क़ाफ़िला यादों का गुज़रे रेगज़ार-ए-दिल से जब
आँखों में लाज़िम है सारी रात तुग़्यानी रहे.
.
क्यूँ भला सोचूँ वो दुश्मन है मेरा या कोई दोस्त
मैं रहूँ अव्वल तो बेशक़ कोई भी सानी रहे.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 3, 2018 at 11:42am

शुक्रिया आ. दिनेश भाई 

Comment by santosh khirwadkar on November 3, 2018 at 10:52am

आदरणीय भाई श्री नीलेश जी नमस्कार , बेहतरीन ग़ज़ल !
क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे. बेहतरीन शे'र

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2018 at 9:46am

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 3, 2018 at 8:47am

आदरणीय नीलेश जी सादर नमस्कार , लाजबाब हुई आपकी गजल वाह वाह और वाह , बधाई आपको 

Comment by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 5:57am

वाह वाह वाह, बहुत ख़ूब आदरणीय नीलेश जी, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. क्या कहने, 

क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ 
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे. 

सादर. 

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on November 2, 2018 at 11:37pm

क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ 
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे. ....

वाह...बहुत ही उम्दा...बधाई कुबूल फ़रमाइये

Comment by Balram Dhakar on November 2, 2018 at 11:05pm

हमेशा की तरह बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है, आदरणीय नीलेश जी।

बधाई स्वीकार करें।

सादर।

Comment by Gurpreet Singh jammu on November 2, 2018 at 8:33pm

वाह सर जी  ये एक और खूबसरत  ग़ज़ल आपकी पढ़ने को मिली । मतले सहित सभी अशआर शानदार हुए ,  बहुत बधाई आपको 

Comment by दिनेश कुमार on November 2, 2018 at 6:57pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई आ. निलेश सर। वाह वाह वाह।

Taaki qatil ko mere... kya shaandar sher huye hain

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