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ओ बी की आठवीं वर्षगाँठ पर कुछ दोहे - लक्ष्मण रामानुज

ओ बी ओ में हो रहा, उत्सव का आगाज |

आठ  वर्ष  तक का सफ़र,साक्ष्य बना है आज  ||

 

दूर दृष्टि बागी लिए, खूब बिछया साज |

योगराज के यत्न से, बना खूब सरताज | |

 

काव्य विधा को सीखते, विद्वजनों के साथ

सच्चे मन से साधते, नव अंकुर का हाथ |

लघु-कथाए रच रहे, गध्य क्षेत्र में लोग,

मिली प्रतिष्ठा जो यहाँ, माने नवल प्रयोग ||

 

सौरभ सी खुशबू मिले, रंगत भरी सुगंध

सीख-सीख सब रच रहे, सुंदर ललित निबंध |

 

सबके मन खिलते यहाँ, प्रेम प्रीति के रंग

काव्य विधा को सीखने, करते सब सत्संग |

 

काव्य गजल या गीत को, पढ़ते है सब साथ

छंद रचे मन भाव से, मिले साथ का हाथ ||

 

प्राची में नित भौर ही, रंगत भरी सुगंध

रचते मन के भाव से, सुन्दर ललित निबंध |

 

ओबीओ परिवार में, है खुशियों का राज

ई-पत्रक में मंच पर, माने सब सरताज ||  

 

जो भी जुड़ते मंच से, बढ़ा सके आधार |

छंद मुक्त की काव्य में, बहती रहे बयार ||

(नितांत मौलिक व स्वरचित)

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

 

 (मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by Satyanarayan Singh on April 2, 2018 at 11:51pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय हार्दिक बधाई

Comment by TEJ VEER SINGH on April 2, 2018 at 7:49pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी। ओ बी ओ के सभी आदरणीय सदस्यों को हार्दिक बधाई।

Comment by Mohammed Arif on April 2, 2018 at 7:24pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी आदाब,

                      ओबीओ की आठवीं वर्षगाँठ बहुत ही सुंदर दोहे रचे । हार्दीक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर की इस्लाह का संज्ञान लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2018 at 6:58pm

आ. भाई लक्ष्मण लडीवाला जी, ओबीओ की बर्षगाँठ पर बेहतरीन दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on April 2, 2018 at 5:58pm

जनाब लक्ष्मण रामानुज लड़ी वाला जी आदाब, ओबीओ की आठवीं सालगिरह पर बहुत उम्दा दोहे रचे आपने,और साथ ही प्रबन्धन समिति के सदस्यों को उनके नाम के साथ मुख़ातिब किया ये और भी अच्छा लगा,आपको भी सालगिरह पर बहुत बधाई,साथ ही इस सुंदर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।

कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

पहले दोहे में 'आग़ाज़' के साथ 'आज' की तुकान्तता सही नहीं,क्योंकि 'आग़ाज़' शब्द में 'ज' के नीचे बिंदी लगती है"ज़" ।

ठीक इसी तरह दूसरे दोहे में 'साज़' के साथ 'सरताज' की तुकान्तता भी सही नहीं है,क्योंकि 'साज़' के 'ज'के नीचे भी बिंदी लगती है "साज़",उम्मीद है आप इस बारीक नुक्ते को समझ रहे होंगे

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2018 at 3:49pm

हार्दिक आभार संग ओबीओ वर्ष गाँठ के आपको भी बधाई श्री श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2018 at 3:17pm
बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय  । हार्दिक बधाई आपको 

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