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ग़ज़ल नूर की-हँसता चेहरा यूँ तो रुख्सत उसे कर आएगा

2122 /1122 /1122 /22 (112)
.
हँसता चेहरा यूँ तो रुख्सत उसे कर आएगा 
दिल पे टूटेंगे सितम..... दर्द से भर आएगा.
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एक दूजे को जो देखेंगे अगर हम यूँ ही 
किसी चेहरे का किसी पर तो असर आएगा.
.
अपनी आँखों से हटा ले ये अना की पट्टी
तुझ को हर शख्स तेरा अक्स नज़र आएगा.
.
सोच के गहरे समुन्दर में लगा ले गोते,   
उथले पानी में कहाँ हाथ गुहर आएगा?  
.
रूह को अश्क-ए-नदामत से कभी धो कर देख,   
हुस्न हस्ती का तेरी और निखर आएगा.
.
कोई मंज़िल ही नहीं है तो कहाँ पहुँचेंगे
इस सफ़र बाद कोई और सफ़र आएगा

.
नूर बुलवाए कभी “नूर” को मिलने के लिए
जिस्म की ख़ाक यहीं राख में धर आएगा. 
.

निलेश “नूर”
मौलिक अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2017 at 4:46pm

शुक्रिया आ. अफरोज़ साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2017 at 4:46pm

धन्यवाद आ. Kalipad Prasad Mandal जी... यदि आप तानाफुर दोष पर विस्तार से बता पायेंगे तो समझने और   सीखने में आसानी होगी ..
सादर 

Comment by Afroz 'sahr' on December 24, 2017 at 1:57pm
आदरणीय निलेश जी बहुत दिनों के बाद मंच पर आपकी उपस्थिती से दिल मसरूर हुआ। इस रचना पर बहुत बहुत बधाई आपको ,,,,,
Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 24, 2017 at 11:49am

आ निलेश  जी  बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद कुबूल करे  | दूसरा और चौथा शेर के सानी  मेंऔर ६वा के उला में  तनाफुर दोष नज़र आ रहा है | बाकी  गुणीजन बताएंगे | सादर 

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