For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की -बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
.
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
.
देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”  
.
क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र 
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
.
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
.
तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1528

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on May 7, 2017 at 10:01pm
आदरणीय नीलेश जी,जानना मेरे लिए शेष नहीं रहा अब।रही बात आपकी तो वह आपकी बात है,और आप पर है।समाप्तप्राय चर्चा को तूल देना भी शायद वक्त का तकाजा नहीं है।रही बात जज कहने की,तो जज शब्द के उच्चारण भर से न कोई जज होता है ,न आरोपी।यह सब परिस्थिति और साक्ष्य तय करते हैं कि ऐब कहाँ है।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 8:49pm

शुक्रिया आ. सतविन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 8:49pm

आ. सुरेन्द्रनाथ जी,

आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 8:49pm

आ. मनन जी,

अपने पूर्व कमेंट को  पढ़िये..... जज कि बात कौन कर रहा है ..जान जाइएगा 
सादर 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 3:04pm
आदरणीय नीलेश जी,हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल और इस पर हुई चर्चा के लिए।
Comment by नाथ सोनांचली on May 6, 2017 at 8:53pm
आदरणीय भाई नीलेश जी सादर अभिवादन, बहुत उम्दा गजल कहीं आपने, और इस गजल पर चली सार्थक चर्चा से हम जैसे नवंतुको को भी फायदा होंगा।
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
इस शैर के लिए अलग से अतिरिक्त बधाई।
Comment by Manan Kumar singh on May 6, 2017 at 8:52pm
आदरणीय,बजा फरमाया आपने।अदावत जैसी तो कोई बात ही नहीं है यहाँ।हाँ,आरोपी कौन और जज कौन यह अब तो अस्पष्ट नहीं है,सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2017 at 8:38pm

आ. मनन जी,
ग़ज़ल कहता हूँ तो इशारों में बात  कहता हूँ.... इशारे समझता भी ख़ूब हूँ ....
जज की सोच पर अगर एक ऊँगली उठी है तो आरोपी पर  तीन उठी हैं ..
वैसे अदब में अदालत आनी ही नहीं चाहिए लेकिन ....बहुत से मुहावरे हैं इस मौजूं पर ...
जाने दीजिये 
.

सादर 

Comment by Manan Kumar singh on May 6, 2017 at 8:28pm
आदरणीय, भावार्थ पर जाते तो शायद शंकाकुल नहीं होते।वर्त्तमान संदर्भ की बात थी,उदहारण जुटाने से संबंधित।खैर खैरख्वाही भी कोई चीज होती हैं,सो आपने दिखा दी।जज भी बात सुन-समझकर फैसले लिये करते हैं,आदरणीय।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2017 at 8:10pm

आ. मंच..
आम तौर पर मैं टिप्पणियाँ डिलीट  नहीं करता लेकिन आ. मनन जी की टिप्पणी मंच   की गरिमा में अनुरूप नहीं थी इसलिए मैंने यहाँ से हटा दी है ..
उम्मीद है कि वो भविष्य में कम  से  कम अदबी मंच की  गरिमा का ख़याल रखेंगे ...
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
22 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service