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फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन

है यही मिशन हमारा कि हराम तक न पहुँचे
कोई मैकदे न जाए कोई जाम तक न पहुँचे

थे ख़ुदा परस्त जितने,वो ख़ुदा से दूर भागे
जो थे राम के पुजारी,कभी राम तक न पहुँचे

ज़रा सीखिये सलीक़ा,नहीं खेल क़ाफ़िए का
वो ग़ज़ल भी क्या ग़ज़ल है जो कलाम तक न पहुँचे

लिखो तज़किरा वफ़ा का तो उन्हें भी याद रखना
वो सितम ज़दा मुसाफ़िर जो मक़ाम तक न पहुँचे

लिया नाम तक न उसका,ए "समर" यही सबब था
मिरी आशिक़ी के क़िस्से रह-ए-आम तक न पहुँचे

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by दिनेश कुमार on August 29, 2016 at 7:36pm
मतला ता मक़ता हर शेर बहुत खूब हुआ है आदरणीय समर साहब। आपका जवाब नहीं।
ज़रा सीखिये सलीक़ा,नहीं खेल क़ाफ़िए का... यही सीखने की इच्छा है सर।
वो ग़ज़ल भी क्या ग़ज़ल है जो कलाम तक न पहुँचे। ... बेहतरीन शेर। वाह
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 29, 2016 at 9:14am
आदरणीय सर बहुत सुन्दर और सार्थक भाव के अत्यंत प्रभावशाली ग़ज़ल । हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on August 28, 2016 at 11:08pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 28, 2016 at 11:08pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on August 28, 2016 at 4:54pm

वाह ! वाह ! ये भी खूब हुई है तरही गजल. बहुत-बहुत मुबारकबाद कुबूलें आदरणीय समर कबीर साहब. सादर नमन.


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Comment by rajesh kumari on August 28, 2016 at 12:28pm

वाह्ह्ह  वाह भाई जी ये भी खूब लिखी दाद स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

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