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नसीब आने पर ( लघु-कथा ) - डॉo विजय शंकर

एक बहुत गरीब आदमी था। गाँव के लोगों के छोटे-मोटे काम करता रहता था , लोग जो दे देते उसी से अपने परिवार की गुजर बसर कर लेता था। गरीबी से परेशान फिर भी शांत। जीवन भी अनुभव के अलावा उसे कुछ दे नहीं रहा था। एक बार उसने सारा दिन गाँव के कुम्हार के घर काम किया। शाम को खुश होकर कुम्हार ने उससे कहा , जाओ एक बर्तन उठा लो , जो अच्छा लगे , जो तुम चाहो , बड़े से बड़ा।" पर उससे कुछ सोचते हुए एक छोटी सी गुल्लक उठाई। कुम्हार यह देख कर मुस्कुराया पर कुछ बोला नहीं। उसने कुम्हार को धन्यवाद दिया और अपने घर चला गया। घर पँहुच कर उसने अपने बेटे को गुल्लक दी। बेटे ने पूछा , " यह क्या है ? "
उसने कहा ," बेटे यह गुल्लक है , इसमें लोग अपने बचे हुए पैसे , धन रखते हैं। "
" क्यों " , बेटे ने स्वाभाविक सा प्रश्न किया।
" इसलिए कि कभी मुसीबत आ जाए या कोई जरूरत पड़ जाए और पैसों की जरूरत पड़ जाए तो वे गुल्लक फोड़ कर उन पैसों से अपना काम निकाल लें " उसने अपने बेटे को समझाया।
" तो हम इस में क्या रखेंगे ? " बेटे ने गुमसुम होकर कहा।
" बेटे , तुम्हारे जितने भी अरमान हों , जितने भी सपने हों वो तुम इस गुल्लक में डालते जाना , उन्हें याद रखना " , फिर कुछ रुक कर बोला , " और जब तुम्हारे अच्छे दिन आयें , तुम्हारे नसीब जागें तब तुम अपनी यही गुल्लक फोड़ लेना।"


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on June 27, 2016 at 8:27pm

" बेटे , तुम्हारे जितने भी अरमान हों , जितने भी सपने हों वो तुम इस गुल्लक में डालते जाना , उन्हें याद रखना " , फिर कुछ रुक कर बोला , " और जब तुम्हारे अच्छे दिन आयें , तुम्हारे नसीब जागें तब तुम अपनी यही गुल्लक फोड़ लेना।"
बहुत खूब आदरणीय विजय जी .... ज़िंदगी की सीख देती इस सनदेशात्मक लघु कथा की प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें। काश आज का वर्तमान अतीत से ये सीख ग्रहण कर भविष्य को सुनिशित कर ले तो उसके संघर्ष का परिणाम भी सुखद होगा।

Comment by pratibha pande on June 27, 2016 at 7:14pm

//   बेटे , तुम्हारे जितने भी अरमान हों , जितने भी सपने हों वो तुम इस गुल्लक में डालते जाना , उन्हें याद रखना " , फिर कुछ रुक कर बोला , " और जब तुम्हारे अच्छे दिन आयें , तुम्हारे नसीब जागें तब तुम अपनी यही गुल्लक फोड़ लेना।"// ... पैसे की गुल्लक अच्छे दिनों में भरी जाती है और मुसीबत में तोड़ी . सपनो की गुल्लक का खेल  उलट है ,. मुसीबत में भी सपनों को  संजोना ,नहीं भूलना  बहुत सुन्दर बात कही  है आपने इस रचना के माध्यम से    बधाई प्रेषित है आदरणीय ...सादर  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 27, 2016 at 5:23pm
पंचपैराग्राफों के बाद डंकपंक्तियों से करारे कटाक्ष करती बहुत ही भावपूर्ण बेहतरीन प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
Comment by Harash Mahajan on June 27, 2016 at 2:21pm

आह !!! सच उम्मीदों पर ही टिकी है दुनियाँ !! सर बहुत बहुत बधाई इस लघु कथा पर आ०  Dr. Vijai Shanker  jजी  !!

सादर !!

Comment by Rahila on June 27, 2016 at 1:24pm
वाह, ये उम्मीद, ये सपने जरूर साकार होते है, जब इन्हे यकीन की गुल्लक मिल जाती है तब।बहुत खूब, बधाई स्वीकार करें आदरणीय सर जी।सादर
Comment by harikishan ojha on June 27, 2016 at 11:08am

उम्मीदों पर दुनियाँ टिकी हैI बधाई स्वीकार करेI आदरणीय विजय शंकर जी 

Comment by Shyam Narain Verma on June 27, 2016 at 10:47am
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें

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