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हॉल कमरे के बीचों बीच मौजूद गोल मेज़ पर आज फिर गंभीर मंत्रणा का एक और दौर जारी थाI विभिन्न देशों से आए प्रतिनिधिमंडल काफ़ी दिन गुज़र जाने के बाद भी किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाने में असफल रहे थेI जब भी उन्हें आशा की कोई किरण दिखाई देती तो कोई-न-कोई नई समस्या सामने आ खड़ी होतीI माहौल में निराशा तारी होने लगी थी जो सभी के चेहरों से साफ़ साफ़ झलक रही थीI
"लगता है इस बार हमारे मंसूबे कामयाब नहीं होंगेI" सिकंदर महान ने घोर निराशा में कहाI
"दरअसल वो देश अब वैसा नहीं रहा जैसा हमारे पूर्वजों के ज़माने में हुआ करता थाI" नादिर शाह ने एक ठंडी आह भरते हुए कहाI
"जबसे सभी रियासतें एक ही झंडे के तले आ गई हैं, तबसे वो मुल्क भी एक हो चुका हैI" महमूद गज़नवी ने ने अपने मन की बात कहीI
"सीधा हमला करना भी तो मुश्किल है, क्योंकि वह भी अब हथियारों से पूरी तरह लैस हो चुका हैI" चंगेज़ खान ने हाथ मलते हुए कहाI "पुराना वक़्त होता तो इसे लूटना बहुत आसान होताI" अहमद शाह अब्दाली के स्वर में भी निराशा थीI
"अब किया क्या जाए? हम हाथ पर हाथ रखकर भी तो बैठ नहीं सकतेI" मोहम्मद गौरी ने थोड़ा उत्तेजित होते हुए कहाI
"बिल्कुल सही कहा, अगर यूँ ही चुपचाप बैठे रहे तो सोने की चिड़िया हाथ से निकल जाएगीI" सिकंदर ने हाँ में हाँ मिलते हुए कहाI
"समस्या यह भी है कि अगर हमनें एक भी क़दम ग़लत उठाया तो हम दुनिया भर के मीडिया की नज़र में आ जाएंगेI" एक फ्रांसीसी जनरल ने चेतावनी भरे स्वर में चिंता व्यक्त कीI
बातचीत का सिलसिला एक बार फिर से थम गयाI कमरे में पूरी तरह चुप्पी फैलने ही वाली थी कि एक गोरी महिला मेज़ के पास आकर बोली:
"देखिए साहिबान! उम्र और तजुर्बे में मैं आप सबसे बहुत छोटी हूँ, लेकिन इस समस्या का एक उपाय है मेरे दिमाग़ मेंI इजाज़त हो तो कुछ कहूँI"
उस महिला के इन शब्दों से सबको आशा की एक धुँधली सी किरण दिखाई देने लगीI
"हाँ हाँ! जो कहना है खुल कर कहो ईस्ट इंडिया कंपनी! आख़िर तुमसे ज़्यादा उस उस देश के बारे में और कौन जानता हैI" तैमूर लंग ने उत्साह भरे स्वर में पूछाI
"सबसे पहले हमें अपनी जंगी पोशाकों को त्यागना होगा और व्यापारियों के भेष में वहाँ धावा बोलना होगाI"
"लेकिन ऐसा क्यों?" अहमद शाह अब्दाली ने आश्चर्य भरे स्वर में पुछाI
"क्योंकि अब उन्हें डरा धमका कर नहीं, बल्कि एक मंडी बनाकर ही लूटा जा सकता हैI"
"लेकिन उसे मंडी बनाकर हम बेचेंगे क्या?" यह स्वर सामूहिक थाI
"हम उन्हें सपने बेचेंगेI उन्हीं सपनों की चकाचौंध से उन्हें अंधा करेंगेI और फिर उसी अंधेपन का फ़ायदा उठाकर सोने की चिड़िया का एक-एक पंख नोच लेंगेI"
"लेकिन इस मुश्किल काम में वहाँ हमारा साथ कौन देगा?"
गोरी महिला ने मेज़ पर दोनों हाथ रखे, और चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट लाते हुए उत्तर दिया:
"भारत की सत्ता में मौजूद मीर जाफर और जयचन्द के वंशजI"
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(मौलिक और अप्रकाशित)

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:31am

हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जीI 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:31am

आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुकरगुज़ार हूँ राहिला जीI 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:25am

भाई सुनील वर्मा जी! मैं दरअसल इस तरह के सवाल की प्रतीक्षा कर ही रहा था, लेकिन किसी और की तरफ सेI बहरहाल, मैं अपनी लघुकथाओं में पात्रों को बेनाम ही रखना पसंद करता हूँ, या फिर बहुत ज़रूरी हो जाए तो एकाध नाम से काम चला लेता हूँI लेकिन गौर से देखा जाए तो इस लघुकथा में पात्रों के नाम महज़ नाम न होकर मेटाफ़ोर हैंI अत: किस ने क्या कहा यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रह जाता, बल्कि महत्वपूर्ण वह है जो कहा गया हैI क्योंकि यह कथानक की आवश्यकता थी, तो मुझे नहीं लगता कि इतने अधिक पात्रों के समावेश से लघुकथा का कोई सन्देश गड्डमड्ड हो रहा हैI  और यदि सन्देश साफ़-शफ्फाक़ रह सके तो पात्रों की सीमित संख्या के लिए आग्रही होना तर्कसंगत नहीं होगाI  

Comment by Sushil Sarna on March 17, 2016 at 5:20pm

लेकिन इस मुश्किल काम में वहाँ हमारा साथ कौन देगा?"
गोरी महिला ने मेज़ पर दोनों हाथ रखे, और चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट लाते हुए उत्तर दिया:
"भारत की सत्ता में मौजूद मीर जाफर और जयचन्द के वंशजI"

वाह सर वाह क्या कथा का सार निकाला है .... सत्ता की सत्यता को बेपर्दा करती इस शानदार लघुकथा के लिए जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है। बहरहाल आपको हार्दिक हार्दिक बधाई आ.योगराज सर।

Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 2:19pm
वाह वाह बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक कथा आ. योगराज प्रभाकर जी बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 16, 2016 at 8:58pm
आँखें खोल देने वाले बेहतरीन कटाक्षमय कथ्य और अतीत और वर्तमान परिदृश्य में सच को बेहतरीन पात्र-चित्रण करते हुए एक उम्दा उत्कृष्ट मिसाल क़ायम करती लघुकथा सृजन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको और आभार आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर जी। बार-बार पढ़कर यह रचना हमें लेखन कर्म हेतु मार्गदर्शित व प्रशिक्षित करती रहेगी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2016 at 6:42pm
बहुत ही सार्थक कथा है।
जयचंदों और जाफरों के हाथ कभी कुछ नहीं लगता , न जीते हुए , न मरने के बाद , फिर भी गद्दारी से बाज नहीं आते कुछ लोग। सच तो यह है कि हमें भी उन्हें कभी नहीं भूलना चाहिए , अपनी आने वाली पीढ़ियों को सचेत रखने के लिए।
बहुत बहुत बधाई इस चेतना जागृत करने वाली कथा के लिए आदरणीय योगराज प्रभाकर जी , सादर।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 16, 2016 at 5:55pm
मीर जाफ़र और जयचंद हमारी संस्कृति पर धब्बा होते हुए भी ये उसी रूप में शाश्वत हैं।आज भी उनके वंशज गर्व सहित सत्ता के गलियारों में विचरण कर रहे हैं।बस सम्भलना तो अब सिराजुदौला औ पृथ्वी राज के साथ साथ आम जनता को भी है।
ऐतिहासिक पात्रों के साथ सुघड़ रचना हुई है यह।बेहतरीन सन्देश का सम्प्रेषण करती हुई।शिल्प का यह अंदाज़ भी सीखाने कीअनन्त कोशिश एवम् सीखने की अनेकों सम्भावनाएं लिए है।सादर नमन!
Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 5:54pm
जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,हमेशा की तरह एक नायाब लघुकथा से रूबरू कराया आपने,आपकी सोच हमेशा नये गुल खिलाती है, इस बेमिसाल लघुकथा के लिये ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by kanta roy on March 16, 2016 at 5:25pm

मुझे  लगता  है  कि  ये  आपके  द्वारा  लिखी  गयी  समस्त  सार्थक  , बेमिशाल  कथाओं  में  ये  कथा  सर्वश्रेष्ठ  लघुकथा  है . इसको बड़ी  संजीदगी  से  कई -कई बार  पढने के  बाद   मुझे  ये  लगा  है .कारण ये  है  कि यहाँ  बिम्बों के  प्रत्यारोपण  को जिस  तरह से किया  गया  है वो अपरिकल्पनीय है .

भारत के  इतिहास  में  सबके  सब  लुटेरे शासक रहे  है और आज  के  देशकाल के  सन्दर्भ में  जिस  तरह से देश  की प्राकृतिक व् मानवीय मूल्यों के  साथ उनके श्रमबल का दोहन कर   वैश्वीकरण  करके भौतिकवादिता को बढ़ावा देकर जिस  मानसिक स्तर पर रोपित  किया  जा  रहा  है  वो  हम भारतीयों को भविष्य में गुलामी  के  कगार  तक  पहुंचाने  के  लिए  काफी  है  . 

एक  छोटी  सी  लघुकथा  में  कितना  बड़ा परिवेश  आपने  रोपण  किया  है  . शिल्प  मुग्ध करने वाला  है यहाँ . 

लाजवाब  लघुकथा , सच कहूँ तो आँखों को चौधियाने  वाली  लघुकथा  है  ये  . 

बारम्बार  अभिनन्दन आपको . 

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