गजल/धूप 
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करो  तय दोस्तो  थोड़ा  जिगर में  धूप का होना 
मिटा सीलन को देता है कि घर में धूप का होना /1
दुआ मागी थी रिमझिम में जरा सी धूप तो दे दो 
अखरता क्यों तुझे  है अब डगर में धूप का होना /2
जहाँ  देखो  वहीं  जलवा  करें  साए  इमारत के 
पता चलता किसे है अब नगर में धूप का होना /3
चलो आँगन में रख आए चटखती हड्डियों को अब
जरूरी   है  बुढ़ापे   की   उमर  में   धूप   का  होना /4
करो उम्मीद मिल जाए सरों की सीध में सूरज
पता देता है साहस का सफर में धूप का होना /5
हटाओ चिलमनों को अब घरों से औ दिमागों से
तबीयत साज  रखता है  सहर में धूप का होना /6
चलो कुछ देर बैठें अब किनारे झील के यारो
समा रंगीन करता  है असर में धूप का होना /7
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मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
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क्या बात है क्या बात है आदरणीय बहुत खूबसूरत
खूब सुन्दर रचना
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