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तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122 - 1122 - 1122 - 22 या 112

 

तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन

रोजे-अव्वल से ही बदनाम रहा हूँ लेकिन

 

हक़ जताने से कभी हक़ नहीं होता साबित

फ़र्ज़ के साथ में इकराम रहा हूँ लेकिन

 

जिंदगी की तो कभी सुबह नहीं बन पाया

तेरी तनहाई भरी शाम रहा हूँ लेकिन

 

यूँ लताफत की हिमायत में खड़ा रहता हूँ

सत्य के वास्ते दुरदाम रहा हूँ लेकिन

 

मैं अहिल्या के लिए राम नहीं बन पाया

राधिका के लिए घनश्याम रहा हूँ लेकिन

 

तेरी यादों की सुखन में मैं रहा या न रहा

तेरी हर नज्म का पैगाम रहा हूँ लेकिन

 

आज के दौर की रफ़्तार से तो जुड़ न सका

हाँफते शह्र का आराम रहा हूँ लेकिन

 

 लताफत- नम्रता या विनय, दुरदाम- अविनेय हठी

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2015 at 2:36pm

तेरी यादों की सुखन में मैं रहा या न रहा

तेरी हर नज्म का पैगाम रहा हूँ लेकिन----------------गजब , शानदार आ०मिथिलेश जी .

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2015 at 11:36am

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय मिथिलेश जी, दाद कुबूल कीजिए

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 16, 2015 at 6:35pm

आदरणीय मिथलेश जी.......बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने|  हार्दिक बधाई |

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2015 at 5:02pm

मैं अहिल्या के लिए राम नहीं बन पाया
राधिका के लिए घनश्याम रहा हूँ लेकिन

तेरी यादों की सुखन में मैं रहा या न रहा
तेरी हर नज्म का पैगाम रहा हूँ लेकिन

शानदार अलफ़ाज़ शानदार अहसासों से भरी इस खूबसूरत ग़ज़ल के बन्दे का सलाम कबूल फरमाएं आदरणीय मिथिलेश वामनकर भाई साहिब।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 16, 2015 at 4:24pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , बहुत कठिन रदीफ ले के आपने बहुत कामयाबी से निभा लिया है , लाजवाब गज़ल हुई है , इन दो अश आर के लिये और पूरी गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

मैं अहिल्या के लिए राम नहीं बन पाया

राधिका के लिए घनश्याम रहा हूँ लेकिन

आज के दौर की रफ़्तार से तो जुड़ न सका

हाँफते शह्र का आराम रहा हूँ लेकिन

Comment by Ravi Shukla on November 16, 2015 at 2:47pm
आदरणीय मिथिलेश जी इस महीने के मुशायरे की बह्र पर आपने ये ग़ज़ल भी बहुत खूब कही है इन दो शेरो के लिये विशेष बधाई स्‍वीकार करें
मैं अहिल्या के लिए राम नहीं बन पाया
राधिका के लिए घनश्याम रहा हूँ लेकिन

आज के दौर की रफ़्तार से तो जुड़ न सका
हाँफते शह्र का आराम रहा हूँ लेकिन

पूरी ग़ज़ल के लिये तो दाद है ही । सादर

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