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ग़ज़ल :- जो समझा आपने ऐसा नहीं मैं

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

जो समझा आपने ऐसा नहीं मैं
मुसलमाँ हूँ ,मगर सच्चा नहीं मैं

मैं सच हूँ,और हमेशा सच रहूँगा
किसी भी झूट से डरता नहीं मैं

दुआओं से मुझे फ़ुर्सत नहीं थी
तुम्हारी याद में रोया नहीं मैं

कटी ऐसे ही सारी रात यारों
वो बहलाते रहे ,बहला नहीं मैं

मुझे तो आब-ए-कौसर की तलब है
तिरे दरियाओं का प्यासा नहीं मैं

मिरा "मसरूर" अक्सर बोलता है
बड़ा समझो मुझे बच्चा नहीं मैं

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 20, 2015 at 7:06am

दुआओं से मुझे फ़ुर्सत नहीं थी
तुम्हारी याद में रोया नहीं मैं  ------------   क्या बात है आदरणीय समर भाई , खूब सूरत गज़ल के इस और भी खूबसूरत शे र के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 10:24am

अच्छे अश’आर हुए हैं जनाब समर साहब, दाद कुबूल करें

Comment by दिनेश कुमार on August 18, 2015 at 5:32pm
वाह वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल आदरणीय समर कबीर साहब। हर एक शेर दमदार। दिल से मुबारकबाद सर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 18, 2015 at 2:13pm

आदरणीय समर कबीर जी हमेशा की तरह एक शानदार ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by vijay nikore on August 18, 2015 at 1:34pm

  गज़ल पढ़ कर आनन्द आया। बधाई।

Comment by Ravi Shukla on August 18, 2015 at 12:18pm

आदरणीय समर साहब आपकी एक और ग़ज़ल से रू ब रू हुए । अंदाज दिलकश लगा । मतले मे साफगोई भी और सवाल भी । शेर दर शेर दाद कुबूल करें । सादर ।

Comment by Ravi Shukla on August 18, 2015 at 12:18pm

आदरणीय समर साहब आपकी एक और ग़ज़ल से रू ब रू हुए । अंदाज दिलकश लगा । मतले मे साफगोई भी और सवाल भी । शेर दर शेर दाद कुबूल करें । सादर ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:48am

मिरा "मसरूर" अक्सर बोलता है
बड़ा समझो मुझे बच्चा नहीं मैं

बहुत ही सुन्दर अशआर हुए हैं ...आ० समर भाई जी हार्दिक बधाई स्वीकारें .

Comment by Harash Mahajan on August 18, 2015 at 10:18am
आ0 समर साहिब हर बार एक अलग अंदाज़ की पेशगी ही आपके हुनर को बता देता है । एक बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । ढेरों दाद । साभार ।

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