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'कि भाई भाई का दुश्मन है क्या किया जाए'

ग़ज़ल
1212 1122 1212 22 / 112

यही समाज की उलझन है क्या किया जाए
कि भाई भाई का दुश्मन है क्या किया जाए

हर एक शख़्स गरानी के दौर में देखो
ख़ुद अपने आप से बदज़न है क्या किया जाए

सभी ये कहते हैं यारो हम आशिक़ों के लिये
ये शब अज़ल ही से बैरन है क्या किया जाए

सफ़र प जाने से पहले ये सोचना है हमें
हर एक गाम प रहज़न है क्या किया जाए

जो तू नहीं है तो तेरे बग़ैर ऐ जानम
बहुत उदास ये मधुबन है क्या किया जाए

ये सोच सोच के दिल मेरा बैठा जाता है
ख़फ़ा फिर आज वो चितवन है क्या किया जाए

'समर' ख़ुशी का तसव्वुर करें तो कैसे करें
क़दम क़दम यहाँ शेवन है क्या किया जाए

"समर कबीर"

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 2, 2021 at 11:20pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, बहतरीन अशआर पर उम्द: ग़ज़ल हुई है शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। मुहतरम माज़रत के साथ जानकारी के लिए मालूम करना चाहता हूँ कि 

मिसरा 'जो तू नहीं है तो तेरे बग़ैर जानम' में लफ़्ज़ 'ऐ जानम' पर एक बार फिर से विचार किया जा सकता है क्या? चूंकि 'ऐ' मौजूद शय के लिए है। 

क्या 'ऐ जानम' की जगह जानेमन कह सकते हैं?   सादर। 

Comment by Rachna Bhatia on August 2, 2021 at 8:44pm

आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार।सर्, लाजवाब ग़ज़ल कही आपने। यह बार बार पढ़ने वाली ग़ज़ल है ।सर्, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 2, 2021 at 7:31pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर कबीर साहब जी। लाजवाब ग़ज़ल

सफ़र प जाने से पहले ये सोचना है हमें
हर एक गाम प रहज़न है क्या किया जाए

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