For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खिले फूलों के रंगों ने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल )

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२


समय ने हद से बढ़ के जब नयी मजबूरियाँ दी हैं
उन्हीं मजबूरियों ने  ही  तनिक  चालाकियाँ दी हैं।१।


सफर में  राह  ने  काँटे  उगाये  पाँव  बेबस कर
मगर इक  हौसले  ने  ही  कई  बैशाखियाँ दी हैं।२।


बढ़ाया हाथ भी ठिठका कहा भौंरे ने जब इतना
खिले फूलों के रंगों ने चमन को तितलियाँ दी हैं।३।


भुला बैठे हैं सब  शायद  यही  सोचे थे मन में पर
वतन से याद कर हमको किसी ने हिचकियाँ दी हैं।४।


नहीं थी एक भी यूँ खासियत उसके कथन में फिर
जरा सी बात को  किस ने  भला  यूँ सुर्खियाँ दी हैं।५।


तुझे पछुआ का दामन  दे  गया है सत्य होगा पर
उसी मौसम  ने  हम को  भी  नयी  पुर्वाइयाँ दी हैं।६।


कहीं पर कैब से दहशत कहीं पर है खुशी देखो
भरी  जाती  न  बँटवारे  ये  कैसी  खाइयाँ दी हैं।७।


मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2019 at 7:51am

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।

Comment by vijay nikore on December 30, 2019 at 6:23am

गज़ल अच्छी बनी है। उमदा ख्याल हैं। बधाई, मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2019 at 5:31pm

आ. गीता जी, गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on December 26, 2019 at 2:45pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ग़जल अच्छी लगीI समय ने हद से बढ़ के जब नयी मजबूरियाँ दी हैं
उन्हीं मजबूरियों ने  ही  तनिक  चालाकियाँ.... बहुत ही उम्दा हैI

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2019 at 8:28pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2019 at 8:25pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और त्रुटी की ओर ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Sushil Sarna on December 24, 2019 at 6:41pm

वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी बहुत ही खूबसूरत अहसासों की ग़ज़ल पेश की है आपने , दिल से बधाई स्वीकार करें।

Comment by Samar kabeer on December 24, 2019 at 2:31pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'मगर इक  हौसले  ने  ही  कई  बैशाखियाँ दी हैं'

इस मिसरे में 'बैशाखियाँ' को 

"बेसखियाँ" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
13 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service