For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माथे की बिन्दी

माथे की बिन्दी

कोई ताज़ी भूलें, कुछ नए आँसू

हमारा अब अलसाया-सा बन्धन

ले आता है ओठों पर रूक-रूक एक ही सवाल ---

सुबह से गोधूली तक के अल्प समय में 

तिरछी परछाइयाँ डूबने से पहले ही

मेरे प्यार, भूल गए तुम प्यार की पहचान

तुम कैसे इतने बदल गए ?

समुद्र से करती कोमल-स्पर्श संवेदित हवाएँ

लहरों के ओठ बन्द कर उन्हें सुलातीं थीं जो

उन हवाओं के भी जैसे  मिजाज बदल गए

टूटे विश्वासों की आँचभरी पीर

यह गरीब उन्मन पवन

भय और विह्वलता 

परिचित परिवेष से यह सभी मुझको

कहीं दूर खींच ले जा रहे हैं

डसते अकेलेपन की पथरीली

उदास सो रही गलियों में ---

भ्रान्तियों के भार हैं बढ़ रहे

और ... बढ़ रही है अजाने

बिन चले, जीने की थकान

ढकी हुई गहरी छाहों के बीच अब तुम अदृश्य

चला गया साथ सुंदर सस्मित हमारा वह प्यार भी

मोह का स्वभाव ही  शायद कुछ ऐसा होता है

फटे हुए मन में घावों की पपड़ी कुरेदते

प्यार थक जाता है ....

अपने दायें  हाथ में तुमने एक कांटा चुभोकर

मिट्टी के चबूतरे पर बैठे जो लगाई थी रक्त से

सुनो, पोंछ डाली है मैंने वह माथे की बिन्दी

बह गई है भीग कर तकिए पर

समझ लो उसे अब हमारे प्यार की आहुति

                            -------

--- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 551

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 10:33am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 4, 2018 at 11:20pm

आ.भाई विजय जी इस बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on April 4, 2018 at 7:31pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 4, 2018 at 5:29pm

आपकी हर कविता कुछ न कुछ अतृप्ता का अहसास छोड़ देती है..और यही बड़ी खासियत है मेरी नजर में आदरणीय..एक और बेहतरीन कविता..

Comment by vijay nikore on April 4, 2018 at 9:25am

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय भाई मोहम्मद आरिफ़ जी

Comment by vijay nikore on April 4, 2018 at 9:24am

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय भाई समर जी

Comment by vijay nikore on April 4, 2018 at 9:24am

 सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय श्याम नारायण जी 

Comment by Mohammed Arif on April 2, 2018 at 7:27pm

आदरणीय विजय नीकोर जी आदाब,

                           बहुत ही.बेहतरीन पेशकश । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on April 2, 2018 at 3:49pm

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह ये कविता भी प्रभावशाली हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2018 at 3:19pm
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service