For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक दूजे के संग ...

इक दूजे के संग ...
 
चक्षु को चक्षु से देखा
करते हमने द्वंद
हाथों में उलझे
हाथ देखकर
हम तो रह गए दंग
आँख बचा कर
कब बाला ने
अधरों का छोड़ा रंग
लाज शरम को मारो गोली
अब इज़हार हुआ दबंग
ये न पूछो
इस युग में
परिधान हुए क्यूँ तंग
आधुनिकता बेकार अगर न
झांकें कपड़ों से अंग
मृग नयनी के
नयन नशीले
हाला जैसा तन
स्वप्न लोक में करता भ्रमण
अब सतरंगी मन
तू मैं
मैं तू
करते करते
मस्ती हुई मलंग
बैठ बाईक पर
दौड़ चले यंग
इक दूजे के संग
 
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 479

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on April 7, 2018 at 2:26pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 4, 2018 at 5:20pm

वाह आदरणीय अच्छी कविता लिखी..बधाई

Comment by Sushil Sarna on April 4, 2018 at 12:55pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब, सादर प्रणाम .... रचना आपकी नज़र को अच्छी लगी, सृजन सार्थक हुआ। हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 3, 2018 at 3:55pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति को अपनी मन मुदित करती प्रतिक्रिया से शोभित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 3, 2018 at 3:55pm

आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on April 3, 2018 at 3:55pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब ... सृजन को अपनी आत्मीय प्रशंसा से शोभित करने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on April 2, 2018 at 12:43pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,उम्दा कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on April 1, 2018 at 5:42pm

आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन आपकी रचना पढ़कर मन प्रसन्न हुआ बहुत बहुत बधाई आपको इस आकर्षक रचना पर 

Comment by Mohammed Arif on April 1, 2018 at 5:27pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,

                              बहुत ही सुंदर और ध्यानाकर्षण कराती कविता । यदि इन काफ़ियों का इस्तेमाल किया जाय तो एक अच्छी ग़ज़ल तैयार हो सकती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service