For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन

ख़ुशियों का इस जहाँ में फ़ुक़दान हो न जाये

ग़म अपनी ज़िन्दगी का उन्वान हो न जाये

नफ़रत का आज कंकर जो तेरी आँख में है

इक रोज़ बढ़ते बढ़ते चट्टान हो न जाये

मज़लूम की कहानी सुनकर तू हँस रहा है

तेरा भी हाल ऐसा नादान हो न जाये

सारे अदू लगे हैं,यारो इसी जतन में

पूरा हमारे दिल का अरमान हो न जाये

दोनों तरफ़ की फ़ौजें होने लगीं इकट्ठा

सरहद पे आज फिर से घमसान हो न जाये

आये न मौत मुझको,यारब यही दुआ है

जब तक कि आख़िरत का सामान हो न जाये

पढ़ते हैं छन्द मेरे,कहते हैं भाई 'सौरभ'

इस दौर का "समर"भी रस खान हो न जाये

--------

फ़ुक़दान-- कमी

उन्वान--शीर्षक

अदू--दुश्मन

घमसान--लड़ाई,जंग

आख़िरत--ज़िन्दगी में नेक काम करना

---

समर कबीर

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 767

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 9:48pm

जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,आप सबकी दुआओं से तबीअत अब कुछ बहतर है ।

सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 9:45pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

लुग़ात की रु से सही शब्द 'घमसान' ही है ।

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 9:41pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 9:40pm

जनाब पीयूष जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 9:38pm

जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 9:36pm

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,आपकी दुआओं से तबीअत अब कुछ बहतर है ।

सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 9:34pm

जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब, आमीन !

सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 9:32pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by नाथ सोनांचली on February 22, 2018 at 6:19pm

आली जनाब आद0 समर साहब सादर प्रणाम। आपको मंच पर देख कर अतिशय प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। हम सबकी दुवाएँ हैं कि आप सदा स्वस्थ रहें। आपकी ग़ज़लों से हम सीखते हैं।

एक एक शैर दमदार और उम्दा। कहन और खयाल बेहतरीन। हरेक शैर कुछ कहता है। इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दिली मुबारकवाद कुबूल फरमाएं। सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 22, 2018 at 1:54pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।  टाइप में घुमसान की जगह घमसान हो गया है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
18 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
22 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service