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1222 1222 1222
दुआओं की पहुँच तो आसमाँ तक है
मगर तू बोल तेरी हद कहाँ तक है

तेरी ख़ामोशी तेरा घर जला देगी
अभी शोला पड़ोसी के मकाँ तक है

ज़माना चाँद को छू आया है लेकिन
तू अब भी जुगनुओं की दास्ताँ तक है

परस्तिश देखिए गौ माँ के भक्तों की
अक़ीदत सिर्फ़ उन सबकी ज़बाँ तक है

वहाँ से देखता हूँ दुनिया को ऐ जाँ
रसाई तेरी नज़रों की जहाँ तक है

Meaning:
परस्तिश - पूजा, अक़ीदत - श्रद्धा
रसाई - पहुँच
-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ajay Tiwari on October 31, 2017 at 1:25pm

आदरणीय शिज्जु साहब,
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2017 at 12:26pm

आप सभी से क्षमा माँगता हूँ, मेरी ग़ज़लों को मुहब्बतों से नवाज़ने के लिए आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया

Comment by Mohammed Arif on April 15, 2017 at 6:06pm
वाह!वाह!! क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आदरणीय शिज्जू शकूर साहब । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by narendrasinh chauhan on April 15, 2017 at 5:24pm

लाजवाब 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 14, 2017 at 4:50pm
वाह आदरणीय बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई..बधाई
Comment by Samar kabeer on April 13, 2017 at 8:00pm
जनाब शिज्जु शकूर साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on April 13, 2017 at 5:40pm
तेरी ख़ामोशी तेरा घर जला देगी
अभी शोला पड़ोसी के मकाँ तक है

वाह आदरणीय शिज्जू शकूर जी..बहुत बढिआ ग़ज़ल हुई है..
Comment by Gurpreet Singh jammu on April 13, 2017 at 5:40pm
तेरी ख़ामोशी तेरा घर जला देगी
अभी शोला पड़ोसी के मकाँ तक है

वाह आदरणीय शिज्जू शकूर जी..बहुत बढिआ ग़ज़ल हुई है..
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2017 at 8:17pm

वाह वाह और वाह ..शिज्जू भाई...
बहुत बढ़िया ग़ज़ल पेश की आपने ....
काश लोग समझ सकें ..
आमीन 

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