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कुछ ख़ुदरा शे'र.......कुछ क़ता'त....

तेरे लब छू के, कोई हर्फ़-ए-दुआ हो जाता.

तू अगर चाहता, तो मैं भी ख़ुदा हो जाता.

====

तन्हाइयों में गीत लिखे, और गा लिए.

नाकाम दिल के दर्द हँसी में छुपा लिए.

कल शब जो ज़िंदगी से हुआ सामना "साबिर"

क़िस्से सुने कुछ उसके, कुछ अपने सुना लिए.

====

हमने तो तुझे अपना ख़ुदा मान लिया है,

अब तेरी रज़ा है कि करम कर या मिटा दे.

====

दिल जला होगा, जो ख़त मेरा जलाया होगा,

मुझे पता है जो तासीर-ए-इश्क़ है "साबिर"

====

जो कह पाया, काफ़ी कम था, पर छूट गया कितना सारा.

मन जीत न पाया प्रिय तेरा- इस कोशिश में जीवन हारा.

====

वो कहते हैं वो हिन्दू हैं, ये कहते हैं मुस्लिम हैं ये.

मैं क्या करता मैं इंसाँ था, हर ज़ात ने बाहर मुझे किया.

====

तुमने जो मुस्कुरा दिया तो भरम टूट गये,

मैं समझता था तुम मेरे लिए संजीदा हो.

====

अन्धों की नगरी में "साबिर", हर एक हर्फ़ उजाला लिखना.

हर इंसाँ इक ईश्वर लिखना, हर दिल एक शिवाला लिखना.

====

ख़ून आँखों से छलक आया है.

ज़िंदगी ने बहुत रुलाया है.

ख़ुश हुए आप मूसीक़ी सुनकर,

हमने ग़ज़लों में दर्द गाया है.

 

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Comment

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Comment by डॉ. नमन दत्त on May 27, 2011 at 11:14am

त्यागी जी,

आपने नाचीज़ की हौसलाअफ़ज़ाई की इसके लिए हम दिली तौर से आपके शुक्रगुज़ार हैं...ऐसी इनायत आगे भी बनी रहेगी ये उम्मीद करते हैं...

Comment by डॉ. नमन दत्त on May 27, 2011 at 11:11am
शुक्रिया धीरज जी....
Comment by Dheeraj on May 27, 2011 at 10:16am
ख़ून आँखों से छलक आया है.

ज़िंदगी ने बहुत रुलाया है.

ख़ुश हुए आप मूसीक़ी सुनकर,

हमने ग़ज़लों में दर्द गाया है.



........... बिना तारीफ किए रह नही पाया डॉ साहिब  यक़ीनन बहुत ही अच्छी दर्दभरी और उम्दा रचना है. विलंब ही मगर आभार स्वीकार करे
Comment by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on May 27, 2011 at 8:39am

कशिश को बस कस कर कहना तो कोई आप से सीखें साबिर जी

तुमने जो मुस्कुरा दिया तो भरम टूट गये,

मैं समझता था तुम मेरे लिए संजीदा हो.

 

Comment by डॉ. नमन दत्त on May 26, 2011 at 1:06pm
धन्यवाद गणेश जी...आभार हौसलाअफ़ज़ाई के लिए....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2011 at 9:57am

डॉ साहिब, सभी कतात काफी उम्द्दा है , दिल जला होगा जो ख़त जलाया होगा ...............मैं इंसां था हर जात ने बाहर किया.......और अंधों की नगरी वाले शे'र काफी भावपूर्ण और गहरे अर्थ को समेटे हुए है | दाद कुबूल कीजिये | 

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