For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डॉ. नमन दत्त's Blog (13)

एक ग़ज़ल....

फ़ित्ने-नौ यूँ उठाने लगी ज़िंदगी |

आँख उनसे लड़ाने लगी ज़िंदगी ||

ताज़ा दम होने को आए थे बज़्म में,

सूलियों पे चढ़ाने लगी ज़िंदगी ||

होश खाने लगी मौत भी देखिये,

फिर ये क्या गुनगुनाने लगी ज़िंदगी ||

उनकी आवाज़ फिर आईना बन गई,…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on June 28, 2012 at 8:52am — 2 Comments

= जीवन सन्दर्भ =

= जीवन सन्दर्भ =

खेत की मुंडेर पर चहकते पक्षियों की ढेर सारी बातें,

गेहूँ की बालियों के आँचल की मदमाती भीनी-भीनी सुगंध,

सर्दी की धूप का मेरी पीठ पर रखा दोस्ताना हाथ,

एक लय होकर काम करते हुए अनेक जीवन,

बैलों के गले की घण्टियों का राग,

यहाँ वहाँ उछलकूद करते बछड़े,

रंभाती गायें,

इन परिदृश्यों का स्वार्गिक…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2012 at 5:02pm — 6 Comments

एक ग़ज़ल....

कल रात कहीं कुछ रीत गया.
लम्हे टूटे, मैं बीत गया.

साँसें क्या हैं..? इक व्यर्थ गति,
जब साँसों का संगीत गया.

जीवन सपनों के नाम हुआ,
तज कर मुझको हर मीत गया.

अक्सर जीवन की चौसर पर,
सुख हार गया, दुःख जीत गया.

इक दर्द रहा जो क़ायम है,
'साबिर' बाक़ी सब बीत गया.


[14/04/2007]

Added by डॉ. नमन दत्त on December 28, 2011 at 8:30am — 3 Comments

साँई स्तवन

# साँई स्तवन #



जनम सफल कर ले, भवसागर तर ले,

छुट जायेंगे सारे फंदे, साँई चरण धर ले....

१. कौन सहारा देगा तुझको सोच ज़रा,

तुझे कहाँ ले जाएगा अभिमान तेरा,

अंत समय क्या तेरे साथ चलेगा जग ?…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on September 25, 2011 at 8:17am — No Comments

बाक़ी रहा न मैं....

बाक़ी रहा न मैं, न ग़मे-रोज़गार मेरे.

अब सिर्फ़ तू ही तू है परवरदिगार मेरे.



यारब हैं सर पे आने को कौन सी बलायें,

क्यूँ आज मेरी क़िस्मत है साज़गार मेरे.



बरसेगी और तुझपे ? उनके करम की बदली,…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on September 12, 2011 at 7:30am — 2 Comments

कब यह पीर मिटेगी मन की....

[ विशेष - ओ.बी.ओ. के साहित्य मर्मज्ञ सुधि पाठकों के समक्ष अपनी यह रचना रख रहा हूँ. इसमें मैंने जीवन और आयु के विशेष सन्दर्भ इस मंतव्य के साथ प्रयोग किये हैं कि जीवन सदैव कम होता जाता है जबकि आयु सदैव बढ़ती ही जाती है...इसी भावना को ध्यान में रखकर रचना का अवलोकन करें...मुझे उम्मीद है कि ये विशिष्ट सन्दर्भ प्रयोग आप सभी को पसंद आएगा...]

 

 

कब यह पीर मिटेगी मन की.…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on July 15, 2011 at 10:00pm — 1 Comment

जाने कब के बिखर गये होते....

= ग़ज़ल =

जाने कब के बिखर गये होते.

ग़म न होता,तो मर गये होते.



काश अपने शहर में गर होते,

दिन ढले हम भी घर गये होते.



इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -

सारे नासूर भर गये होते.



दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,

क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.



ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,

पार वरना उतर गये होते.



कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,

दिल न जाते, तो सर गये होते.



बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना

ख़्वाब…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on June 19, 2011 at 8:30am — 5 Comments

मैं अकेला हूँ प्रिये -

मैं अकेला हूँ प्रिये -

हर दृश्य में, हर श्राव्य में,

हर मूर्त में, हर काव्य में,

जो परे हर सुख से, मैं वो क्लान्त बेला हूँ प्रिये...

मैं अकेला हूँ प्रिये -

[१]   इक संग तेरे जीवन मधुर रसधार बन बहता गया,

   तेरे लिए हर क्लेश दुनिया का सहा, सहता गया,…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2011 at 6:00pm — 5 Comments

दो ग़ज़लें.....

= एक =

कोई ऐसी सज़ा न दे जाना.

ज़िंदगी की दुआ न दे जाना.

दिल में फिर हसरतें जगा के मेरे,

दर्द का सिलसिला न दे जाना.

वक्त नासूर बना दे जिसको-

यूँ कोई आबला न दे जाना.

सफ़र में उम्र ही कट जाए कहीं,

इस क़दर फ़ासला न दे जाना.

साँस दर साँस बोझ लगती है,

ज़िंदगी बारहा न दे जाना.

इस जहाँ के अलम ही काफ़ी हैं,

और तुम दिलरुबा न दे जाना.

पीठ में घोंपकर कोई ख़ंजर,

दोस्ती का सिला न दे जाना.

इल्म हर शय का उन्हें है "साबिर"

तुम कोई… Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on June 6, 2011 at 9:30am — 6 Comments

कुछ ख़ुदरा शे'र.......कुछ क़ता'त....

तेरे लब छू के, कोई हर्फ़-ए-दुआ हो जाता.

तू अगर चाहता, तो मैं भी ख़ुदा हो जाता.

====

तन्हाइयों में गीत लिखे, और गा लिए.

नाकाम दिल के दर्द हँसी में छुपा लिए.

कल शब जो ज़िंदगी से हुआ सामना "साबिर"

क़िस्से सुने कुछ उसके, कुछ अपने सुना लिए.

====

हमने तो तुझे अपना ख़ुदा मान लिया है,

अब तेरी रज़ा है कि करम कर या मिटा दे.…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on May 24, 2011 at 6:30pm — 6 Comments

दो मुक्तक.....

 

= एक =

कोई इंसा "किसी" के लिए - 

सिसकता है, मचलता है, तड़पता है......

रोता है, मुस्कुराता है....

गाता है, गुनगुनाता है....…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on May 17, 2011 at 9:06am — 3 Comments

एक गीत...

आप सभी ने मेरी ग़ज़लों को सराहा...धन्यवाद के साथ हिंदी का एक गीत आप सबके समक्ष रख रहा हूँ...आशा करता हूँ कि इसके लिए भी आप लोगों का आशीर्वाद मुझे पूर्ववत मिलेगा...

= सावन के अनुबंध =

सावन के अनुबंध...

            नयन संग सावन के अनुबंध..... 

रिश्तों की ये तपन कर गई, मन…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 4:49pm — 4 Comments

मेरी अपनी दो ग़ज़लें....

साथियो,

सादर वंदे,

मैं संगीत की साधना में रत उसका एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ और कला एवं संगीत को समर्पित एशिया के सबसे प्राचीन " इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ " में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हूँ...मुझे भी ग़ज़लें कहने का शौक़ है...मैं " साबिर " तख़ल्लुस से लिखता हूँ... अपनी लिखी दो ग़ज़लें आप सबकी नज़र कर रहा हूँ...नवाज़िश की उम्मीद के साथ......

 

= एक =

रूह शादाब कर गया कोई.…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 9:00am — 13 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
8 hours ago
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
9 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 30
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Nov 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service