फ़ित्ने-नौ यूँ उठाने लगी ज़िंदगी |
आँख उनसे लड़ाने लगी ज़िंदगी ||
ताज़ा दम होने को आए थे बज़्म में,
सूलियों पे चढ़ाने लगी ज़िंदगी ||
होश खाने लगी मौत भी देखिये,
फिर ये क्या गुनगुनाने लगी ज़िंदगी ||
उनकी आवाज़ फिर आईना बन गई,…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 28, 2012 at 8:52am — 2 Comments
= जीवन सन्दर्भ =
खेत की मुंडेर पर चहकते पक्षियों की ढेर सारी बातें,
गेहूँ की बालियों के आँचल की मदमाती भीनी-भीनी सुगंध,
सर्दी की धूप का मेरी पीठ पर रखा दोस्ताना हाथ,
एक लय होकर काम करते हुए अनेक जीवन,
बैलों के गले की घण्टियों का राग,
यहाँ वहाँ उछलकूद करते बछड़े,
रंभाती गायें,
इन परिदृश्यों का स्वार्गिक…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2012 at 5:02pm — 6 Comments
कल रात कहीं कुछ रीत गया.
लम्हे टूटे, मैं बीत गया.
साँसें क्या हैं..? इक व्यर्थ गति,
जब साँसों का संगीत गया.
जीवन सपनों के नाम हुआ,
तज कर मुझको हर मीत गया.
अक्सर जीवन की चौसर पर,
सुख हार गया, दुःख जीत गया.
इक दर्द रहा जो क़ायम है,
'साबिर' बाक़ी सब बीत गया.
[14/04/2007]
Added by डॉ. नमन दत्त on December 28, 2011 at 8:30am — 3 Comments
# साँई स्तवन #
जनम सफल कर ले, भवसागर तर ले,
छुट जायेंगे सारे फंदे, साँई चरण धर ले....
१. कौन सहारा देगा तुझको सोच ज़रा,
तुझे कहाँ ले जाएगा अभिमान तेरा,
अंत समय क्या तेरे साथ चलेगा जग ?…
Added by डॉ. नमन दत्त on September 25, 2011 at 8:17am — No Comments
बाक़ी रहा न मैं, न ग़मे-रोज़गार मेरे.
अब सिर्फ़ तू ही तू है परवरदिगार मेरे.
यारब हैं सर पे आने को कौन सी बलायें,
क्यूँ आज मेरी क़िस्मत है साज़गार मेरे.
बरसेगी और तुझपे ? उनके करम की बदली,…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on September 12, 2011 at 7:30am — 2 Comments
[ विशेष - ओ.बी.ओ. के साहित्य मर्मज्ञ सुधि पाठकों के समक्ष अपनी यह रचना रख रहा हूँ. इसमें मैंने जीवन और आयु के विशेष सन्दर्भ इस मंतव्य के साथ प्रयोग किये हैं कि जीवन सदैव कम होता जाता है जबकि आयु सदैव बढ़ती ही जाती है...इसी भावना को ध्यान में रखकर रचना का अवलोकन करें...मुझे उम्मीद है कि ये विशिष्ट सन्दर्भ प्रयोग आप सभी को पसंद आएगा...]
कब यह पीर मिटेगी मन की.…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on July 15, 2011 at 10:00pm — 1 Comment
= ग़ज़ल =
जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.
काश अपने शहर में गर होते,
दिन ढले हम भी घर गये होते.
इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते.
दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,
क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.
ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,
पार वरना उतर गये होते.
कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.
बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना
ख़्वाब…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 19, 2011 at 8:30am — 5 Comments
मैं अकेला हूँ प्रिये -
हर दृश्य में, हर श्राव्य में,
हर मूर्त में, हर काव्य में,
जो परे हर सुख से, मैं वो क्लान्त बेला हूँ प्रिये...
मैं अकेला हूँ प्रिये -
[१] इक संग तेरे जीवन मधुर रसधार बन बहता गया,
तेरे लिए हर क्लेश दुनिया का सहा, सहता गया,…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2011 at 6:00pm — 5 Comments
Added by डॉ. नमन दत्त on June 6, 2011 at 9:30am — 6 Comments
तेरे लब छू के, कोई हर्फ़-ए-दुआ हो जाता.
तू अगर चाहता, तो मैं भी ख़ुदा हो जाता.
====
तन्हाइयों में गीत लिखे, और गा लिए.
नाकाम दिल के दर्द हँसी में छुपा लिए.
कल शब जो ज़िंदगी से हुआ सामना "साबिर"
क़िस्से सुने कुछ उसके, कुछ अपने सुना लिए.
====
हमने तो तुझे अपना ख़ुदा मान लिया है,
अब तेरी रज़ा है कि करम कर या मिटा दे.…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on May 24, 2011 at 6:30pm — 6 Comments
= एक =
कोई इंसा "किसी" के लिए -
सिसकता है, मचलता है, तड़पता है......
रोता है, मुस्कुराता है....
गाता है, गुनगुनाता है....…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on May 17, 2011 at 9:06am — 3 Comments
आप सभी ने मेरी ग़ज़लों को सराहा...धन्यवाद के साथ हिंदी का एक गीत आप सबके समक्ष रख रहा हूँ...आशा करता हूँ कि इसके लिए भी आप लोगों का आशीर्वाद मुझे पूर्ववत मिलेगा...
= सावन के अनुबंध =
सावन के अनुबंध...
नयन संग सावन के अनुबंध.....
रिश्तों की ये तपन कर गई, मन…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 4:49pm — 4 Comments
साथियो,
सादर वंदे,
मैं संगीत की साधना में रत उसका एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ और कला एवं संगीत को समर्पित एशिया के सबसे प्राचीन " इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ " में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हूँ...मुझे भी ग़ज़लें कहने का शौक़ है...मैं " साबिर " तख़ल्लुस से लिखता हूँ... अपनी लिखी दो ग़ज़लें आप सबकी नज़र कर रहा हूँ...नवाज़िश की उम्मीद के साथ......
= एक =
रूह शादाब कर गया कोई.…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 9:00am — 13 Comments
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