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= एक =
कोई ऐसी सज़ा न दे जाना.
ज़िंदगी की दुआ न दे जाना.
दिल में फिर हसरतें जगा के मेरे,
दर्द का सिलसिला न दे जाना.
वक्त नासूर बना दे जिसको-
यूँ कोई आबला न दे जाना.
सफ़र में उम्र ही कट जाए कहीं,
इस क़दर फ़ासला न दे जाना.
साँस दर साँस बोझ लगती है,
ज़िंदगी बारहा न दे जाना.
इस जहाँ के अलम ही काफ़ी हैं,
और तुम दिलरुबा न दे जाना.
पीठ में घोंपकर कोई ख़ंजर,
दोस्ती का सिला न दे जाना.
इल्म हर शय का उन्हें है "साबिर"
तुम कोई मशवरा न दे जाना.


= दो =
फ़िज़ा में कोहरा कितना घना है.
निकलने से ये पहिले सोचना है.
लहर के सामने टिक पायेगी क्या ?
जो पानी पर सजाई अल्पना है.
न घूमो जिस्म लेकर काग़ज़ों के,
प्रबल बरसात की संभावना है.
कहीं क़ालीन गंदे हों न उनके,
हमारा पाँव कीचड़ में सना है.
तेरे ख़्वाबों की परियाँ गुनगुनाएं,
इसी ख़ातिर उमर भर जागना है.
जुदा हो जायेंगे रस्ते हमारे,
धरी रह जायेगी जो योजना है.
मुझे बरबाद करके क्या मिला है,
कभी मिल जाएँ वो तो पूछना है.
दुआ घनघोर बारिश की न माँगो,
ये सारा गाँव मिट्टी से बना है.
गले तक आ गया "साबिर" ये पानी,
हर इक सूरत तेरा तय डूबना है.

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Comment

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Comment by डॉ. नमन दत्त on June 7, 2011 at 10:53am

आदरणीय सतीश जी और गणेश जी....

नवाज़िश, करम, शुक्रिया, मेहरबानी....आप लोगों की हौसलाअफ़ज़ाई के लिए....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 7, 2011 at 9:32am
आदरणीय नमन दत्त साहिब, नमन है आपके कलम को, दोनों गज़ले बहुत ही खुबसूरत हैं, सभी शे'र उम्द्दा और भावपूर्ण लगे | बहुत बहुत बधाई आपको |
Comment by satish mapatpuri on June 7, 2011 at 2:42am
मुझे बरबाद करके क्या मिला है,
कभी मिल जाएँ वो तो पूछना है.
बहुत खूब दत्त साहेब, वाकई काबिले तारीफ़ ख्याल है. बधाई.  
Comment by डॉ. नमन दत्त on June 6, 2011 at 5:30pm
माननीय सौरभ पाण्डे जी तथा वीरेंद्र जैन साहब...आप दोनों के प्रति हार्दिक आभार कि आप दोनों ने अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया दी हमारी रचनाओं पर...आगे भी इसी अनुग्रह की अपेक्षा रखते हैं हम...अति-आभार...
Comment by Veerendra Jain on June 6, 2011 at 12:17pm

न घूमो जिस्म लेकर काग़ज़ों के,
प्रबल बरसात की संभावना है...

 

waah waah ..Dr saab..dono hi gazalen bahut hi shandar hai..badhai aapko..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2011 at 11:51am

नज़रों के सामने गुजरती हुयी तमाम में से पोस्टेड आपकी दूसरी ग़ज़ल ने हठात् अँटका लिया.

प्रत्येक भाव लाज़वाब, हर शेर कमाल.

//तेरे ख़्वाबों की परियाँ गुनगुनाएं,
इसी ख़ातिर उमर भर जागना है.//  ...  ... कहने को अब बचा क्या कि हालात क्या हैं..!!

//जुदा हो जायेंगे रस्ते हमारे,
धरी रह जायेगी जो योजना है.//  ........ बहुत खूब.

 

और इस शेर ने कुछ अधिक ही विश्वास हासिल किया है - 

//दुआ घनघोर बारिश की न माँगो,
ये सारा गाँव मिट्टी से बना है.// ...

बेहतर बंद के लिये बधाई और धन्यवाद.

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